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इलेक्टोरल बाँडः SC के फैसले के खिलाफ AIBA, आर्टिकल 143 के तहत राष्ट्रपति से ‘प्रेसिडेंट रेफरेंस’ का आग्रह

Electoral Bond Presidential Reference

ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश अग्रवाला ने इलेक्टोरल बाँड योजना को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पत्र लिख कर इस मुद्दे पर अनुच्छेद 143 की शक्तियों को सक्रिए कर प्रेसिडेंट रेफरेंस लाने मांग की है।

आदिश अग्रवाला ने लिखा है कि सर्वोच्च न्यायालय के 15 फरवरी, 2024 के ऐतिहासिक फैसले में भारत सरकार की चुनावी बाँड योजना को रद्द करने के महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं। अदालत ने न केवल इस योजना को रद्द कर दिया, बल्कि भारतीय स्टेट बैंक को 6 मार्च, 2024 तक राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट योगदान विवरण प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया। इसके अतिरिक्त, भारत के चुनाव आयोग को इस जानकारी को सार्वजनिक रूप से प्रकट करने का निर्देश दिया गया है।

11 मार्च, 2024 को भारतीय स्टेट बैंक ने प्रक्रिया की जटिलता का हवाला देते हुए 30 जून, 2024 तक विस्तार का अनुरोध किया। हालाँकि, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर दिया, और बैंक को 12 मार्च, 2024 तक जानकारी प्रकट करने का आदेश दिया, ताकि 15 मार्च, 2024 तक भारत के चुनाव आयोग के सार्वजनिक प्रकटीकरण की सुविधा मिल सके।

ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने आदिश अग्रवाला ने लिखा है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय और संविधान के प्रति यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं इन तथ्यों को प्रस्तुत करूं और चुनावी बांड मामले के संबंध में राष्ट्रपति संदर्भ की वकालत करूं। इससे कार्यवाही का व्यापक पुनर्मूल्यांकन हो सकेगा, जिससे भारत की संसद, राजनीतिक दलों, निगमों और आम जनता के लिए न्याय सुनिश्चित होगा।

आदिश अग्रवाला ने इस खत में बताया है कि इलेक्टोरल बाँड स्कीम के खिलाफ चार रिट याचिकाएँ दायर कीगई हैं। जिन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत चुनावी बांड योजना की संवैधानिक वैधता का विरोध किया। उन्होंने वित्त अधिनियम, 2017 के प्रावधानों को भी चुनौती दी है।

इन याचिकाओं पर व्यापाक बहस के बाद 232 पन्नों के व्यापक फैसले में, भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने इलेक्टोरल बाँड्स को अवैध घोषित कर दिया है।

एआईबीए के अध्यक्ष ने लिखा कि चुनावी बांड योजना का उद्देश्य राजनीतिक दलों द्वारा कानूनी धन उगाहने को सक्षम करने, औपचारिक चुनाव फंडिंग तंत्र की अनुपस्थिति को संबोधित करना था। इसका कार्यान्वयन वित्त अधिनियम, 2017 के माध्यम से विभिन्न कानूनों में संशोधन द्वारा नियंत्रित किया गया था।

उन्होंने राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि, विधायी उपक्रमों को वैध कानूनी प्रावधानों का पालन करने के लिए दंडित करना अन्यायपूर्ण है। इसके अलावा, किसी भी अदालत के फैसले को केवल संभावित रूप से लागू किया जाना चाहिए, न कि पूर्वव्यापी रूप से, जैसा कि संवैधानिक सिद्धांतों और पिछले न्यायिक उदाहरणों द्वारा जोर दिया गया है।

उन्होंने अपने तर्क को और अधिक स्पष्ट करते हुए लिखा है कि पॉलिटिकल पार्टीज को दान देने वाले के विवरण का खुलासा करने का निर्देश कॉर्पोरेट संस्थाओं और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं दोनों के लिए जोखिम पैदा करता है। गोपनीयता की उम्मीद के साथ चुनावी बांड के माध्यम से दान देने वाले निगमों को अपनी पहचान उजागर होने पर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इस तरह का खुलासा भविष्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कॉर्पोरेट भागीदारी को बाधित कर सकता है और भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है।

संविधान का अनुच्छेद 143 सर्वोच्च न्यायालय को सलाहकार क्षेत्राधिकार प्रदान करता है, जिससे सार्वजनिक महत्व के मामलों पर राष्ट्रपति से परामर्श की अनुमति मिलती है। इसलिए, मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप चुनावी बांड मामले पर राष्ट्रपति का संदर्भ लें और संदर्भ का समाधान होने तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कार्यान्वयन को निलंबित करें।

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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