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मणिपुरः सुप्रीम कोर्ट ने डिसमिस की सामाजिक कार्यकर्ता मालेम थोंगम याचिका

Malem Thongam, Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता मालेम थोंगम द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। मालेम थोंगम ने मणिपुर में चल रहे संकट के विरोध में प्रदर्शन के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने मालेम थोंगम की याचिका तो डिसमिस कर दी लेकिन मणिपुर उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी बात रखने की छूट दे दी है। मालेम थोंगम मणिपुर में शांति और सद्भाव बहाल करने की मांग के साथ 27 फरवरी, 2024 से आमरण अनशन पर हैं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि पहले उच्च न्यायालय में आपको अपनी बात रखनी चाहिए। मालेम थोंगम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर और अधिवक्ता श्री रोहिन भट्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए।
मालेम थोंगम की याचिका पर सुनवाई करतेे हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मालेम थोंगम के वकीलों से पूछा कि वो यहां क्यों आए हैं। इस पर वकीलों ने कहा कि मणिपुर से संबंधित इसी तरह के मामलों को पीठ पहले स्वीकार कर चुकी है, इसीलिए उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका लगाई है।
इस पर सीजेआई ने पलट कर कहा कि मणिपुर हाईकोर्ट फंक्शनल है। याचिकाकर्ता को पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए।
रिट याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता के खिलाफ 2.03.2024 को दो एफआईआर दर्ज की गईं, जिसमें उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 309 और 153 ए के तहत आरोप लगाया गया, जिसमें कहा गया कि मालेम थोंगम की गतिविधियों से विभिन्न जनजातियों के बीच वैमनस्य पैदा हो सकता है और उसका प्रदर्शन आत्महत्या का है। इसके अलावा 12.3.2024 को धारा 309 और 153 ए के तहत अपराध लगाया गया लेकिन इम्फाल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्हें जमानत दे दी थी।

इससे पहले, मालेम थोंगम ने नई दिल्ली में पांच दिनों तक उपवास किया और फिर मणिपुर आ गईं। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसका उद्देश्य शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि भारतीय दंड के प्रावधानों को बदलकर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और अपनी शक्तियों का दुरुपयोग है। संहिता (आईपीसी) अपने सिर पर, और बिना किसी अपराध के। मालेम थोंगम ने याचिका में कहा है कि वो संविधान के भाग तीन के अनुच्छेद 14, 19(1)(ए), और 21 के तहत अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस माननीय न्यायालय के समक्ष तत्काल रिट याचिका दायर की है। सभी परिस्थितियों पर गौर करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो नोटिस जारी के इच्छुक नहीं अलबत्ता याचिकाकर्ता मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सकता है।

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About the Author: Yogdutta Rajeev

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