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राजद्रोह के कानून पर सिर्फ बहस होगी या बुधवार को राजद्रोह खत्म होगा- सुप्रीम कोर्ट क्या करेगा- देखें रिपोर्ट

Rajdroh kanoon, सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में लगभग 7 महीने बाद राजद्रोह के कानून पर बहस होगी और फिर संभवतः राजद्रोह कानून ही खत्म कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को अंग्रेजों के जमाने में बनाए राजद्रोह पर सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 11 मई को आदेश के तहत देशभर में राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर तबतक के लिए रोक लगा दी थी, जब तक कोई ‘उचित’ सरकारी मंच इसकी समीक्षा नहीं कर लेता। सुप्रीन कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आजादी के पहले के इस कानून के तहत कोई नया केस दर्ज नहीं करने के निर्देश भी दिए थे।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कानून के खिलाफ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की तरफ से दायर याचिका सहित 12 याचिकाओं पर सुनवाई के लिए बुधबार के दिन सूचीबद्ध किया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत अधिकतम सजा उम्रकैद का प्रावधान है। इसे देश की स्वतंत्रता के 57 साल पहले और आईपीसी बनने के लगभग 30 साल बाद, 1890 में दंड संहिता में शामिल किया गया था। आजादी से पहले के कालखंड में बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ प्रावधान का इस्तेमाल किया गया।

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण के नेतृत्व वाली पीठ ने आदेश दिया था कि प्राथमिकी दर्ज कराने के अलावा, देशभर में राजद्रोह संबंधी कानून के तहत चल रही जांचों, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाहियों पर भी रोक रहेगी। पीठ ने कहा था, ‘आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) की कठोरता मौजूदा सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं है’। बेंच ने कहा था, ‘हम अपेक्षा करते हैं कि इस प्रावधान का पुन: परीक्षण पूरा होने तक सरकारों द्वारा कानून के उक्त प्रावधान का उपयोग जारी नहीं रखना उचित होगा।’

उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी प्रभावित पक्ष को संबंधित अदालतों में जाने की स्वतंत्रता है और अदालतों से अनुरोध है कि मौजूदा आदेश पर विचार करते हुए राहत की अर्जियों पर विचार करें। कोर्ट ने कहा था, ‘आईपीसी की धारा 124ए के तहत तय आरोपों के संबंध में सभी लंबित मुकदमों, अपीलों और कार्यवाहियों पर रोक रहेगी। अन्य धाराओं के संबंध में निर्णय लिया जा सकता है, यदि अदालतों की राय है कि आरोपी के साथ पक्षपात नहीं होगा।’

पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकियों की निगरानी करने की जिम्मेदारी देने के केंद्र के सुझाव पर बेंच सहमत नहीं हुई। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, देश में 2015 से 2020 के बीच राजद्रोह के 356 मामले दर्ज किए गए और 548 लोगों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि, छह साल की इस अवधि में राजद्रोह के सात मामलों में गिरफ्तार केवल 12 लोगों को दोषी करार दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने 1962 में राजद्रोह कानून की वैधता को बरकरार रखा था और इसका दायरा सीमित करने का प्रयास किया था ताकि इसका दुरुपयोग नहीं हो।

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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