‘अगर कुछ जजेज़ अपने सुनवाई के दौरान कोई टिप्पणी करते हैं, और जजमेंट या ऑर्डर में उसका जिक्र भी नहीं होगा तो ऐसे में लॉ मिनिस्टर होने के नाते मुझे कहना ही पड़ेगा। जजेज़ ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। भारत में लोकतंत्र है। यहां राजा नहीं है। राजा कुछ भी कहता रहे और जनता को टिप्पणी का अधिकार भी न हो’, ये बातें भारत के कानून मंत्री किरेण रिजिजू ने एक टीवी चैनल के प्रोग्राम में कहीं।
हालांकि, कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा है कि भारत के न्यायाधीश दुनिया में सबसे ज्यादा काम करते हैं। अमेरिका में एक जज एक दिन में औसतन एक विवाद का निपटारा करते हैं तो भारत में एक जज औसतन एक सौ से ज्यादा मुकदमों का निपटारा करते हैं। भारत के न्यायाधिकारियों की मेहनत दिखाई नहीं देती। अगर उन्हें पर्याप्त अवकाश नहीं मिला तो उनके स्वास्थ्य पर गलत असर हो सकता है। साथ ही उन्होंने यहभी कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के विषय में उन्होंने जो कहा वो संविधान के आधारभूत संरचना के अनुसार है। 1993 में व्यवस्था परिवर्तन से पहले न्यायधीशों की नियुक्ति कैसे होती रही यह सब जानते हैं।
एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में जब किरण रिजिजू से पूछा गया कि आप जूडिशरी को कंट्रोल करना चाहते हैं?’तो किरन रिजिजू ने कहा- ‘हम कंट्रोल कर ही नहीं सकते हैं, और इस बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि मोदी सरकार ने साढ़े आठ साल में जूडिशरी की सभी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए काफी काम किया है। पहले हजार से दो हजार करोड़ रुपये भी मुश्किल से मिलते थे, और अब अगले साढे चार साल में अदालत की सुविधाओं पर 9 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। कमिटेड जूडिशरी की बात इस देश में पहली बार इंदिरा गांधी के समय में हुई थी। उस समय तो जजों की सीनियॉरिटी को भी नजरअंदाज करके जूनियर जज को सीनियर जज बनाया गया था। इमरजेंसी लागू की गई थी। जूडिशरी को कंट्रोल किया गया था। और अब वही लोग कह रहे हैं कि हम जूडिशरी को कंट्रोल में करना चाहते हैं। मैंने कभी नहीं कहा कि जजों ने संविधान को हाईजैक कर लिया है। ये बात एक पूर्व जज ने कही थी, और मैंने सिर्फ इतना कहा था कि इनकी बात सुनने लायक है। मैंने उनकी बात को शेयर किया था।’
किरण रिजिजू ने कहा कि न्यायपालिका में संशोधन प्रक्रिया के बारे में उनके मत से भारत के 99 फीसदी से ज्यादा न्यायाधिकारी सहमत हैं। इसके मेरे बयानों पर जजेज की प्रतिक्रिया नहीं एक पार्टी विशेष के ‘बड़े वकीलों’ की प्रतिक्रिया आई है। ये वही लोग हैं जिन्होंने कई वरिष्ठ न्यायाधीशों को सुपरसीड कर एक जूनियर को सीजेआई बना दिया था। अगर वो लोग एनडीए सरकार पर आरोप लगा रहे हैं तो भारत के लोग और भारत की न्यायपालिका के लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि सच कौन बोल रहा है।
कानून मंत्री किरण रिजिजू एक सवाल के जवाब में कहा कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसकी हम पब्लिक प्लेटफॉर्म पर चर्चा नहीं कर सकते। मैं प्रकिया पर तो चर्चा नहीं करुंगा, लेकिन सरकार जो भी फैसला करती है वह सोच समझ कर और आपनी नीति के तहत करती है। इसलिए ऐसी चीजों को न हमारी तरफ से, और न ही जुडिशरी की तरफ से पब्लिक डोमेन में डालना चाहिए।
किरण रिजिजू ने कहा कि भारत ही एक ऐसा देश है जहां अंग्रेजी बोलने वाले वकीलों को फीस ज्यादा मिलती है। जो वकील अंग्रेजी में बहस करते हैं वो एक दिन एक-एक करोड़ कमाते हैं और कुछ ऐसे भी वकील हैं जिन्हें दिन भर में कुछ भी नहीं मिलता। यह असमानता दूर होनी चाहिए। उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में भारत की सभी क्षेत्रीय भाषाओं में बहस होनी चाहिए। एनडीए सरकार और सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने वादकारों को अपनी मात्र भाषा में ऑर्डर और फैसलों की प्रति देने की प्रक्रिया शुरु कर दी है। न्यायालयों में छोटे वकीलों को प्रोत्साहन दिया जाए। इसकी भी कोशिश हो रही है।
( सोर्सः इंडिया टीवी पर प्रसारित शो)