तमिलनाडु में राष्ट्रीय स्ंवयसेवक संघ अपने पांच मार्च को प्रस्तावित रूट मार्च को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक स्थगित करने के लिए तैयार हो गया है। दरअसल, तमिलनाडू सरकार ने आरएसएस के रूट मार्च पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन तमिलनाडू का हाई कोर्ट ने सरकार के आदेश को खारिज करते हुए आरएसएस को रूट मार्च की परमीशन दे दी थी।
हाई कोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दाखिल की थी। सुनवाई के दौरान तमिलनाडू सरकार ने कहा कि वो इस मामले में कोई समाधान निकालेंगे कि किन शर्तों पर रूट मार्च की इजाजत दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला संवेदनशील है और आरएसएस को राज्य सरकारके इस प्रस्ताव पर गौर करना चाहिए। इसके बाज आरएसएस के वकील ने कहा कि वो इंतजार के लिए तैयार हैं।
रूट मार्च टालने पर सहमति बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले की सुनवाई 17 मार्च को की जाएगी।
इससे पहले बहस के दौरान तमिलनाडु सरकार की तरफ से एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने आरएसएस के प्रस्तावित रूट मार्च का विरोध करते हुए कहा कि हमने रूट मार्च करने से मना नहीं किया था। लेकिन हरेक गली और मोहल्ले में करने का क्या मतलब है, जहां स्थितियां अच्छी नहीं है। कानून व्यवस्था खराब हो सकती है। कानून व्यवस्था सरकार की जिम्मेदारी है,PFI को बैन किया गया है, संवेदनशील जगहें हैं। सभी स्थानों पर रूट मार्च निकालने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
मुकुल रोहतगी ने तो यहां तक कह डाला कि कि हाईकोर्ट ने आंखें मूंदकर ये आदेश दिया है जो जनहित से संबंधित है। जबकि सरकार ने स्पष्ट किया कि कोई घटना हो सकती है। हमारे पास इंटेलिजेंस की रिपोर्ट है, बॉर्डर से सटे कुछ संवेदनशील इलाके है वहां पर मार्च नहीं निकालने की बात कही है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा एक लोकतंत्र की भाषा है और एक सत्ता की भाषा है। आप कौन सी भाषा बोलते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहां हैं। फिल्हाल तमिलनाडु सरकार को 17 मार्च तक जवाब दाखिल करने और रूट मार्च के स्थान निर्धारित करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं।