कोलकाता हाई कोर्ट ने राज्य की 29 यूनिवर्सिटीज के वाइस चांसलर्स की नियुक्तियों को खारिज कर दिया है। कोलकाता हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सरकार के पास वाइस चांसलर्स की नियुक्ति, पुनर्नियुक्ति,और कार्यकाल बढ़ाने का कोई अधिकार नहीं है। मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और राजर्षि भरद्वाज की डिवीज़न बेंच ने, वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटीज एक्ट 2012 और 2014 के संशोधनों को मद्देनज़र यह आदेश पारित किया।
बेंच ने अपने 46 पन्नों के आदेश में ये कहा “ये अदालत विश्वाविद्यालयों में वाईस चांसलरशिप के महत्व को समझती है, और यह बहुत आवश्यक है के वाइस चांसलर्स की की नियुक्ति कानूनन वैध हो। अगर यह पाया जाता है कि, वाइस चांसलर्स की नियुक्ति एक्ट के प्रावधानों के विरुद्ध हुई है तो उन वाइस चांसलर्स को उनके पद पर बरकरार रखना छात्रों और विश्वविद्यालयों के प्रशासन के लिए हितकारी नहीं होगा।
गौरतलब है कि यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन रेगुलेशंस 2018 के अनुसार वाइस चांसलर्स की नियुक्ति एक सर्च कमिटी करती है। जिसमें यूजीसी का एक प्रतिनिधि, एक स्टेट यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधि और गवर्नर का एक प्रतिनिधि शामिल होता है। कोलकाता सरकार ने वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटीज लॉ एक्ट में अमेंडमेंट कर यूजीसी प्रतिनिधि को राज्य प्रतिनिधि से बदल दिया, और इस संशोधन की सहायता से कई वाइस चांसलर्स की नियुक्ति, पुनर्नियुक्ति और कार्यकाल बढ़ाने का काम पश्चिम बंगाल सरकार करती रही।
कोलकाता हाईकोर्ट ने कहा “जब नियुक्ति और कार्यकाल बढ़ाने का अधिकार चांसलर के पास होता है और राज्य सरकार उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती तो राज्य सरकार ये बताए के किस प्रावधान के अंतर्गत ये कार्यवाहियां की गयीं?”
इस मामले में बेंच ने यह पाया के कुछ वाइस चांसलर्स की नियुक्ति तो चांसलर द्वारा की गयी लेकिन उनका कार्यकाल असंवैधानिक तरीके से राज्य सरकार द्वारा बढ़ाया गया। बेंच ने कहा कि वाइस चांसलर्स को अतिरिक्त कार्यभार देने का अधिकार भी राज्य सरकार के पास नहीं है। अतः बेंच वैसे फैसलों को भी गैर क़ानूनी करार देती है। बेंच ने यह भी पाया कि कई पदासीन वाइस चांसलर्स के पास न्यूनतम 10 वर्ष का भी अनुभव नहीं था। जिस कारण उनकी नियुक्ति भी अवैध घोषित कर दी गईं।। इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए अदालत ने 29 वाइस चांसलर्स की नियुक्तियों को ख़ारिज कर दिया।