बचपन बचाओ आंदोलन की एक याचिका पर दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को जानकारी दी कि इसी वर्ष जनवरी से अब तक राष्ट्रीय राजधानी में बाल श्रमिकों के रूप में कार्यरत 200 से अधिक बच्चों को मुक्त कराया गया है। यह कार्रवाई अभी जारी है।
याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की खंडपीठ ने की। बचपन बचाओ आंदोलन ने अपनी याचिका में ज्वलनशील सामग्री से भरी बेहद छोटी इकाइयों में कारखानों में काम करने वाले बच्चों की दुर्दशा को उजागर किया गया था।
याचिका 8 दिसंबर, 2019 की एक घटना के आलोक में दायर की गई थी, जहां सदर बाजार में शहर की अनाज मंडी में एक इमारत में भीषण आग लग गई थी, जिसके परिणामस्वरूप 12 से 18 वर्ष की आयु के 12 बच्चों सहित 43 लोगों की मौत हो गई थी।
बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से पेश अधिवक्ता प्रभासहाय कौर ने अदालत को बताया कि 11 जनवरी को प्रत्येक जिले में समितियों के गठन का आदेश पारित होने के बाद से सरकार द्वारा मात्र 200 बच्चों का रेस्क्यू किय गया है। उन्होंने यह भी कहा कि एनजीओ द्वारा दर्ज की गई 183 शिकायतों में से 55 शिकायतों में कार्रवाई नहीं की गई है।
दूसरी ओर, दिल्ली सरकार के वकील सत्यकाम ने अदालत को बताया कि बाल श्रमिकों के रेस्क्यू के लिए छापेमारी की प्रक्रिया जारी है। सरकारी वकील ने ताजा स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा।
कोर्ट ने सरकारी वकील के अनुरोध को स्वीकार करते हुए, मामले को 04 मई को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
जनवरी में पीठ ने कहा था कि ऐसी इकाइयों में काम करने वाले बच्चों को बचाया जाना चाहिए और 20 सितंबर, 2019 को अदालत द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। 2019 में एक समन्वय पीठ ने बाल श्रम के मुद्दे से निपटने के लिए दिल्ली सरकार को कई निर्देश जारी किए थे।
इस मामले पर कड़ा रुख अपनाते हुए कोर्ट ने कहा था कि जिन बच्चों को स्कूलों में पढ़ना चाहिए था, उन्हें उन जगहों पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है जो अस्वच्छ, रहने योग्य और दुर्घटनाएं होने का इंतजार कर रही हैं। सरकार की नाक के नीचे” इकाइयों के काम करने पर भी चिंता व्यक्त की, जिसमें पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं “जो इस तरह के कारखानों के बारे में जानते हैं” और फिर भी राज्य द्वारा इस खतरे को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।