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‘जज’ पत्नी ने ‘वकील’ पति से मांगा गुजारा भत्ता, जयपुर फैमिली कोर्ट ने कहा, मासिक भत्ता पत्नी का हक देना होगा

Family Court Jaipur

जयपुर की फैमिली कोर्ट ने निर्देश दिया है कि चाहे पत्नी सरकारी-न्यायिक अधिकारी क्यों न हो पति को गुजाराभत्ता देना ही पड़ेगा। फैमिली कोर्ट के जज अरुण कुमार दुबे ने यह आदेश श्रीगंगानगर में एडिशनल जज के तौर पर तैनात पत्नी की याचिका पर दिया। याची (पत्नी) की शादी 24 नवंबर 2007 को भरत अजमेरा नामर के एक वकील से हुई थी। शादी के बाद साल 2010 और 2015 में दोनों के संयोग से एक बेटी और एक बेटे का जन्म भी हुआ। दोनों बच्चे अपनी मां के साथ रहते हैं। याची पत्नी ने अपनी याचिका में कहा है कि शादी के समय उसका वकील पति नौकरी के लिए प्रयास कर रहा था। उस वक्त भी उसने अपने पति को आर्थिक मदद दी थी।
फैमिली कोर्ट में दाखिल अर्जी में पत्नी ने यह भी कहा है कि जब से उसका पति अजमेर में एपीओ के पद पर नियुक्त हुआ है तब से वो परिवार और बच्चों का ख्याल नहीं रखता है और न ही उनका खर्चा उठाता है। उसके पति का व्यवहार असहयोगात्मक और नकारात्मक हो गया है।
इन सारे तथ्यों के साथ जज पत्नी (याची) ने वकील पति से तलाक के साथ ही बच्चों के भरण पोषण भत्ते की भी मांग की । जिस पर एडवोकेट पति की ओर से पेश हुए वकील डीएस शेखावत ने कहा कि याची ने स्वयं तलाक की अर्जी लगाई है इसलिए वो भरण पोषण भत्ता नहीं मांग सकती, इसके अलावा उसकी मासिक तन्ख्वाह भी दो लाख रुपए है।
फैमिली कोर्ट ने प्रतिवादी (पति) के पक्ष के सारे बयान सुनने के बाद आदेश दिया कि भले ही याची की मासिक आय पति से ज्यादा है फिर भी अगर वो चाहती है तो पति को भरण पोषण भत्ता देना ही पड़ेगा। इसके बाद फैमिली कोर्ट के जज अरुण कुमार दुबे ने पत्नी को हर माह 24 हजार रुपये भरण पोषण भत्ता देने का आदेश पारित कर दिया।

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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