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50 साल बाद! सुप्रीम कोर्ट ने वेब पेज बनाकर केशवानंद भारती केस को फिर से किया याद

Supreme Court

केशवानंद भारती केस की 50 वीं वर्षगाठ पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले पर विशेष वेबपेज बनाया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने घोषणा की कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले की 50वीं वर्षगांठ पर एक वेबपेज समर्पित किया है। इस पेज पर ‘मूल ढांचा सिद्धांत ‘ पर केस से जुड़ी सारी सामग्री अपलोड कर दी गई है।

दरअसल 24 अप्रैल 1973 को 13 जजों के संविधान पीठ ने 7:6 बहुमत से फैसला सुनाया था कि संविधान के मूल ढांचे को संसद द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है। साल 1973 की बात है सुप्रीम कोर्ट में केरल सरकार के खिलाफ एक संत केशवानंद भारती का केस पहुंचा था। पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 13 जज इसे सुनने के लिए बैठे थे। लगातार 68 दिन तक बहस हुई। आखिरकार 24 अप्रैल 1973 को जब फैसला आया तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारें संविधान से ऊपर नहीं हैं।

दरअसल 1973 में केरल सरकार ने भूमि सुधार के लिए दो कानून बनाए थे। इन कानूनों के जरिए सरकार मठों की संपत्ति को जब्त करना चाहती थी। केशवानंद भारती सरकार के खिलाफ कोर्ट पहुंच गए। केशवानंद भारती ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 26 हमें धर्म के प्रचार के लिए संस्था बनाने का अधिकार देता है। ऐसे में सरकार ने इन संस्थाओं की संपत्ति जब्त करने के लिए जो कानून बनाए वो संविधान के खिलाफ हैं। केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट के सामने ये सवाल उठा कि क्या सरकार संविधान की मूल भावना को बदल सकती है?

इस बेंच का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एस एम सीकरी कर रहे थे। इस मामले में 7 जजों ने संत केशवानंद भारती के समर्थन में, जबकि 6 जजों ने सरकार के समर्थन में फैसला सुनाया। अपने फैसले में कोर्ट ने तीन मुख्य बातें कही थी- पहली-सरकार संविधान से ऊपर नहीं है। दूसी, सरकार संविधान की मूल भावना यानी मूल ढांचे को नहीं बदल सकती और तीसरी बात यह थी कि अगर सरकार अगर किसी भी कानून में बदलाव करती है तो कोर्ट उसकी न्यायिक समीक्षा कर सकता है।

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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