दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कोई भी जांच एजेंसी कि किसी अभियुक्त के डिफ़ॉल्ट जमानत के अधिकार से पूरक चार्जशीट के नाम पर वंचित नहीं कर सकती। “टुकड़ा-टुकड़ा” चार्जशीट दायर करना संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ है।
कथित भ्रष्टाचार के एक मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए एक आरोपी अविनाश जैन को डिफ़ॉल्ट जमानत देते समय अदालत ने यह टिप्पणी दी। अदालत ने पाया कि सीबीआई ने भ्रष्टाचार निवारण (पीसी) अधिनियम के तहत अपराधों की जांच पूरी नहीं की थी लेकिन आंशिक चार्जशीट दाखिल कर दी थी।
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अमित शर्मा ने एक आदेश में कहा कि जिन अपराधों के संबंध में एक अभियुक्त को गिरफ्तार किया गया है, उसकी जांच चार्जशीट दाखिल करने के समय पूरी होनी चाहिए और एक पूरक चार्जशीट की अनुमति तभी दी जा सकती है जब कुछ पहलुओं पर जांच, जो अन्यथा मुख्य चार्जशीट में पूरी हो चुकी है, और उस पर गौर किया जाना बाकी हो।
अभियुक्त अविनाश जैन के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि पूरक चार्जशीट के नाम पर जमानत का विरोध किया गया था। अदालत ने कहा कि ऐसा करना आर्टिकल 21 उल्लंघन है। अतः दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपी को 2 लाख रुपये के निजी मुचलके की शर्त के साथ जमानत के आदेश जारी कर दिए।
जमानत की मांग करने वाले अविनाश जैन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने तर्क दिया कि सीबीआई ने इस मामले में केवल आवेदक के कानून के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत पाने के अधिकार को खत्म करने के लिए एक अधूरी चार्जशीट दायर की।
अभियोजन पक्ष ने जमानत अर्जी का विरोध किया और तर्क दिया कि जब दायर की गई चार्जशीट ट्रायल कोर्ट द्वारा संज्ञान लेने के लिए पर्याप्त है तो चार्जशीट को अधूरा नहीं कहा जा सकता है।