अब यूं ही वक्फ किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल एक अधिसूचना का प्रकाशन वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके लिए वैधानिक प्रक्रिया को पूरा करना आवश्यक है। इसमें दो सर्वेक्षण, विवादों का निपटारा और राज्य सरकार वक्फ बोर्ड को रिपोर्ट जमा करना शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी स्पष्ट समर्पण के अभाव में धार्मिक और सार्वजनिक धर्मार्थ उद्देश्यों, संपत्ति के लंबे उपयोग सहित प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के प्रकाश में वक्फ संपत्ति का निर्धारण किया जाएगा।
जस्टिस व रामसुब्रमण्यन और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने एक फैसले में कहा, मुस्लिम कानून के तहत, एक वक्फ कई तरीकों से बनाया जा सकता है, लेकिन मुख्य रूप से मुस्लिम कानून की ओर से इस्लाम को मानने वाले व्यक्ति के किसी चल और अचल संपत्ति के स्थायी समर्पण और इस तरह के समर्पण की अनुपस्थिति में इसे लंबे समय तक उपयोग से अस्तित्व में माना जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सलेम मुस्लिम श्मशान भूमि संरक्षण समिति की ओर से दायर अपील खारिज कर दी। इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने भूमि पर समिति के दावे को खारिज कर दिया गया था। मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ ही सलेम मुस्लिम श्मशान भूमि संरक्षण समिति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। अपीलकर्ता का कहना था कि भूमि का उपयोग कब्रिस्तान के रूप में किया गया था और एक बार वक्फ होने पर वह हमेशा वक्फ बना रहेगा।
पीठ ने कहा, शुरुआत से ही इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इस्लाम को मानने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्य के लिए उक्त भूमि का कोई स्पष्ट समर्पण किया गया था। अदालत ने यह भी पाया कि लंबे समय तक उपयोग से भी वाद भूमि वक्फ भूमि साबित नहीं हुई थी। पीठ ने कहा, यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई ठोस सबूत भी नहीं है कि वर्ष 1900 या 1867 से पहले वाद से पहले भूमि वास्तव में कब्रिस्तान के रूप में इस्तेमाल की जा रही थी।
पीठ ने यह भी कहा कि एक घोषणा को वक्फ अधिनियम, 1954 या वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के अनुरूप होना चाहिए। पीठ ने कहा, दोनों अधिनियमों के प्रावधानों को पढ़ने से पता चलता है कि किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले सर्वेक्षण करना अनिवार्य है।