आरबीआई द्वारा दो हजार के नोट बिना पहचान के बदलने के फैसले को वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट ने आरबीआई के नोटिफिकेशन को बरकरार रखने के फैसले पर रोक की मांग की गई है। दिल्ली हाईकोर्ट ने नीतिगत मामला बताते हुए याचिका को खारिज कर दिया था।
सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि 2,000 रुपये के नोटों ने अपना उद्देश्य पूरा कर लिया है और इसे वापस लेने का निर्णय एक नीतिगत मामला है, जिसमें अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। अदालत ने आरबीआई की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा था कि नवंबर 2016 में उच्च मूल्य के करेंसी नोट बंद करने के केंद्र के फैसले की पृष्ठभूमि में अर्थव्यवस्था की मुद्रा आवश्यकता को पूरा करने के लिए 2,000 रुपये मूल्यवर्ग के बैंक नोट पेश किए गए थे।
पीठ ने कहा कि एक बार अन्य मूल्यवर्ग के बैंक नोट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाने के बाद उद्देश्य पूरा हो गया है। पीठ ने आगे कहा कि इन नोटों को वापस लेने का निर्णय नोटबंदी का हिस्सा नहीं है। इसके अलावा, सरकार ने इन नोटों के आदान-प्रदान के लिए पहचान प्रमाण की आवश्यकता पर जोर नहीं देने का निर्णय लिया है ताकि हर कोई अन्य मूल्यवर्ग के नोटों के साथ इसे बदल सके। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि सरकार का निर्णय विकृत या मनमाना है या यह काले धन, मनी लॉन्ड्रिंग, मुनाफाखोरी को बढ़ावा देता है या यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका में भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय स्टेट बैंक की अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा था कि बड़ी संख्या में 2,000 रुपये के नोट या तो व्यक्तिगत लॉकर में पहुंच चुके हैं अथवा उन्हें अलगाववादियों, आतंकियों, नक्सलियों, ड्रग तस्करों, खनन माफिया व भ्रष्ट लोगों ने जमा कर लिया है।