लगभग 48 साल के बाद, सुप्रीम कोर्ट अब एक और गांधी की अयोग्यता के मामले में सुनवाई करने जा रहा है। मोदी सरनेम मामले में सुप्रीम कोर्ट राहुल गांधी की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करेगा। दरअसल जून 1975 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया था और उन्हें छह साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया था। दोनों ही मामले उच्च न्यायालय से सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। बस फर्क यह था कि उस वक्त इंदिरा गांधी पर चुनावी भ्रष्टाचार का मामला था और अब ‘मोदी-चोर’ यानी एक विशेष कम्युनिटी को अपमानित जनक शब्द बोलने का है।इंदिरा गांधी ने भी अपनी गल्ती नहीं मानी थी और राहुल गांधी ने भी अभी तक खेद व्यक्त नहीं किया है। यहां फर्क यह भी है इंदिरा गांधी के हाथ में सत्ता थी और वो शासनधीश थी। राहुल फिलहाल सस्पेंडेड सांसद हैं।
इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण
इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण को उस मामले के रूप में जाना जाता है। राज नारायण एक स्वतंत्रता सेनानी और विपक्षी नेता थे, जिन्होंने 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। इंदिरा गांधी ने भारी अंतर से चुनाव जीता और उनकी पार्टी ने आम चुनाव जीता। नारायण ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों को नियोजित करने के लिए प्रधान मंत्री के रूप में अपनी शक्तियों का उपयोग किया। इतना ही नहीं उन्होंने आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने अपने प्रचार के लिए सरकारी कर्मचारियों का गलत इस्तेमाल किया।
चार साल बाद, 1975 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति जगमोहनलाल सिन्हा ने माना कि गांधी भ्रष्ट आचरण के दोषी थी, और अदालत ने अपने आदेश में उनका चुनाव रद्द कर दिया। इतना ही नहीं अदालत ने उन्हें संसद से अयोग्य घोषित कर दिया और छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। इस आदेश के विरुद्ध इंदिरा गांधी ने उच्चतम न्यायालय में अपील की।
यह मामला न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर के सामने आया, जो जून 1975 में वार्षिक ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान अदालत का संचालन कर रहे थे। उन्होंने कुछ शर्तों के अधीन आदेश पर रोक लगा दी थी, और इसके तुरंत बाद गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी। नवंबर 1975 में, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया, जिसके कारण अंततः गांधी भारत के प्रधान मंत्री बनी रही।
राहुल गांधी बनाम पूर्णेश मोदी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी गुजरात उच्च न्यायालय के सात जुलाई के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है और कहा था कि यदि उस आदेश पर रोक नहीं लगाई गई तो इससे ‘स्वतंत्र भाषण, और स्वतंत्र विचार खत्म हो जाएगा। गुजरात उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ ने 7 जुलाई को मानहानि मामले में अपनी सजा पर रोक लगाने की गांधी की याचिका खारिज कर दी थी।
गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस हेमंत प्रच्छक ने उनकी याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की थी, ”अब राजनीति में शुचिता- समय की मांग है। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि दोषसिद्धि पर रोक कोई मानक नहीं है बल्कि केवल दुर्लभ मामलों में दिया जाने वाला एक अपवाद है। इसमें गांधी की सजा पर रोक लगाने का कोई उचित आधार नहीं मिला।
गुजरात सरकार में पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने 2019 में राहुल गांधी के खिलाफ उनकी टिप्पणी के लिए आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया था। राहुल ने 13 अप्रैल, 2019 को कोलार, कर्नाटक में एक चुनावी रैली के दौरान बनाया गया। कहा था कि “सभी चोरों का सामान्य उपनाम मोदी कैसे होते है?” उन्होंने ललित मोदी, नीरव मोदी और नरेद्र मोदी भी कहा था।
इस साल 23 मार्च को सूरत की एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 499 और 500 के तहत दोषी ठहराने से पहले खेद व्यक्त करने अवसर दिया मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया जिस पर अदालत ने उन्हें दोषी ठहराने के साथ ही अधिकतम दो साल जेल की सजा सुना दी। फैसले के बाद, 2019 में केरल के वायनाड से लोकसभा के लिए चुने गए गांधी को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत संसद सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
राहुल गांधी ने बाद में सूरत की एक सत्र अदालत में आदेश को चुनौती दी और दोषसिद्धि पर रोक लगाने का अनुरोध किया।खास बात यह कि यहाँ भी राहुल गांधी ने अपने कथन पर खेद व्यक्त नहीं किया है। 20 अप्रैल को, सत्र अदालत ने रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उन्हें उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। उच्च न्यायालय में भी राहुल गांधी के वकील अभिव्यक्ति की आजादी, शिकायतकर्ता की वैधानिकता पर सवाल उठाते रहे लेकिन अपने कथित अपमान जनक शब्दों के बारे में खेद व्यक्त नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट में स्थिति जस की तस है। लगभग 750 पन्नों की रिट याचिका में खेद व्यक्त करने वाले 5 शब्द नहीं हैं।