राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने वाले पूर्णेश मोदी ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दाखिल किया है।पूर्णेश मोदी ने अपने हलफनामे में कहा है कि राहुल गांधी अहंकारी स्वभाव के हैं।उन्होंने जानबूझकर मोदी सरनेम का अपमान किया। पूर्णेश मोदी ने यह भी कहा है कि कोर्ट ने राहुल गांधी को अपने बयान पर खेद जताने का मौका भी दिया लेकिन राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया। बल्कि कोर्ट के सामने अपना अड़ियल रवैया बरकरार रखा।
राहुल गांधी ने गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।इस याचिका से पहले भी पूर्णेश मोदी ने कैविएट दाखिल की थी। 21 जुलाई को राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूर्णेश मोदी को जवाब दाखिल करने को कहा था, जिस पर आज पूर्णेश ने यह हलफनामा दाखिल किया है।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने ध्यान दिलाया कि राहुल गांधी वर्तमान में नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर हैं और विनायक सावरकर की मानहानि के एक अन्य मामले का सामना कर रहे हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा सजा सुनाए जाने के दौरान, गांधी ने एक अशोभनीय रवैया प्रदर्शित किया और दावा किया, “वह सावरकर नहीं बल्कि गांधी थे।”
याचिकाकर्ता ने आगे एक पिछले उदाहरण का हवाला दिया जहां सुप्रीम कोर्ट ने गांधी को “चौकीदार चोर” वाक्यांश को गलत तरीके से बताने के लिए फटकार लगाई और उन्हें अवमानना कार्यवाही में बिना शर्त माफी मांगने के लिए मजबूर किया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि गांधी का “अहंकारी अधिकार, एक समुदाय के प्रति असंवेदनशीलता और कानून के प्रति अवमानना” का रवैया यह बतलाता है की वो क्षमा के योग्य नहीं हैं।
दरअसल कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी गुजरात उच्च न्यायालय के सात जुलाई के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है और कहा था कि यदि उस आदेश पर रोक नहीं लगाई गई तो इससे ‘स्वतंत्र भाषण, और स्वतंत्र विचार खत्म हो जाएगा। गुजरात उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ ने 7 जुलाई को मानहानि मामले में अपनी सजा पर रोक लगाने की गांधी की याचिका खारिज कर दी थी।
गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस हेमंत प्रच्छक ने उनकी याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की थी, ”अब राजनीति में शुचिता- समय की मांग है। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि दोषसिद्धि पर रोक कोई मानक नहीं है बल्कि केवल दुर्लभ मामलों में दिया जाने वाला एक अपवाद है। इसमें गांधी की सजा पर रोक लगाने का कोई उचित आधार नहीं मिला।
गुजरात सरकार में पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने 2019 में राहुल गांधी के खिलाफ उनकी टिप्पणी के लिए आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया था। राहुल ने 13 अप्रैल, 2019 को कोलार, कर्नाटक में एक चुनावी रैली के दौरान बनाया गया। कहा था कि “सभी चोरों का सामान्य उपनाम मोदी कैसे होते है?” उन्होंने ललित मोदी, नीरव मोदी और नरेद्र मोदी भी कहा था।
इस साल 23 मार्च को सूरत की एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 499 और 500 के तहत दोषी ठहराने से पहले खेद व्यक्त करने अवसर दिया मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया जिस पर अदालत ने उन्हें दोषी ठहराने के साथ ही अधिकतम दो साल जेल की सजा सुना दी।
फैसले के बाद, 2019 में केरल के वायनाड से लोकसभा के लिए चुने गए गांधी को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत संसद सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
राहुल गांधी ने बाद में सूरत की एक सत्र अदालत में आदेश को चुनौती दी और दोषसिद्धि पर रोक लगाने का अनुरोध किया।खास बात यह कि यहाँ भी राहुल गांधी ने अपने कथन पर खेद व्यक्त नहीं किया है। 20 अप्रैल को, सत्र अदालत ने रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उन्हें उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। उच्च न्यायालय में भी राहुल गांधी के वकील अभिव्यक्ति की आजादी, शिकायतकर्ता की वैधानिकता पर सवाल उठाते रहे लेकिन अपने कथित अपमान जनक शब्दों के बारे में खेद व्यक्त नहीं किया।