सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति देते हुए कहा शादी से पहले गर्भवती होना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर जस्टिस बी वी नागरत्ना और उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट द्वारा पीड़िता को गर्भपात नहीं कराने का आदेश देना सही नही था।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात की रेप की शिकार 27 हफ्ते की गर्भवती महिला को गर्भापत की इजाजत दे दी।मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय समाज में विवाह के बाद गर्भावस्था न केवल जोड़े के लिए बल्कि परिवार और दोस्तों के लिए भी खुशी और जश्न का कारण है।
इसके विपरीत शादी से पहले गर्भावस्था हानिकारक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा एक महिला का यौन उत्पीड़न अपने आप में चिंताजनक है और ऐसे में गर्भवती हो जाना और चिंता में डाल देता है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने आदेश जारी कर दिया।
देश में कहीं भी नहीं होता कि कोई अदालत अपने से बड़ी अदालत के खिलाफ आदेश जारी करे।
दरअसल दुष्कर्म पीड़िता 25 साल की है और उसने गर्भपात की मंजूरी के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी, जिसपर आनन-फानन में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई की गई। पीड़िता ने दावा किया था कि चार अगस्त को गर्भ का पता चला और सात अगस्त को कोर्ट में अर्जी लगाई गई। कोर्ट ने बोर्ड बनाया और 11 अगस्त को रिपोर्ट आई. बोर्ड गर्भपात के समर्थन में था, लेकिन हाईकोर्ट ने सरकार के नीति के हवाले से अर्जी खारिज कर दी थी।