सुप्रीम कोर्ट ने नई संविधान पीठ का गठन किया है जो20 सितंबर से तीन मामलों की सुनवाई शुरू करेगी। इस संविधान पीठ की अध्यक्षता देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ करेंगे और इसमें जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल होंगे।
*असम लोक निर्माण बनाम भारत संघ
इस मामले में संविधान पीठ के समक्ष ये सवाल है की क्या 1955 नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए किसी संवैधानिक कमजोरी से ग्रस्त है?यह प्रावधान असम में कथित अवैध अप्रवासियों को उनके प्रवास की तारीख के आधार पर नियमित करने या निष्कासित करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। यह मामला राज्य में चल रही राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) अद्यतन प्रक्रिया की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है।
*अशोक कुमार जैन बनाम भारत संघ – यह मामला लोकसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण से संबंधित है।इस मामले को 2003 में पांच-न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया था, जिसमें कानून का तत्कालीन प्रश्न इस प्रकार था: क्या 79वें संवैधानिक संशोधन के तहत एससी/एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए आरक्षण की अवधि को 50 साल से बढ़ाकर 60 साल करना समानता के अधिकार का उल्लंघन है?
*सीता सोरेन बनाम भारत संघ -यह मामला इस सवाल से संबंधित है कि क्या विधायकों को दी गई कानूनी छूट उन्हें रिश्वत लेने के लिए मुकदमा चलाने से बचाती है, भले ही रिश्वत देने वाले की मांग के अनुसार राशि का उपयोग नहीं किया गया हो।यह मामला तय करेगा कि पीवी नरसिम्हा राव मामले में बहुमत की राय, जिसने सांसदों के लिए समान वैधता को बरकरार रखा था, सही ढंग से तय की गई थी या नहीं।
अनुच्छेद 194(2) राज्य विधानमंडल के किसी सदस्य को उनके द्वारा डाले गए किसी भी वोट के लिए मुकदमा चलाने से छूट प्रदान करता है। मामले में याचिकाकर्ता झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था।
2012 में भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त के पास एक शिकायत दर्ज की गई थी जिसमें इसकी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच की मांग की गई थी।सीता सोरेन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आपराधिक साजिश और रिश्वतखोरी के अपराध और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक लोक सेवक द्वारा आपराधिक कदाचार का आरोप लगाया गया था।
2014 में झारखंड उच्च न्यायालय ने मामले को रद्द करने की मांग वाली उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने उस व्यक्ति को अपना वोट नहीं दिया जिसके लिए उसे पहली बार रिश्वत दी गई थी।
उच्च न्यायालय ने माना कि छूट लागू नहीं होती क्योंकि मतदान और रिश्वत के बीच कोई सीधा संबंध नहीं था। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वर्तमान अपील दायर की गई। अपीलकर्ता ने दलील दी है कि पीवी नरसिम्हा राव मामले में फैसले की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए ताकि राजनेता अदालती कार्रवाई के डर के बिना अपनी बात कह सकें।