सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं को नियंत्रित करने को लेकर कानून को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि यह पहले से ही दिल्ली सरकार की याचिका पर विचार कर रहे है। दिल्ली सरकार की याचिका अभी सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष लंबित है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार पहले ही संशोधित कानून को चुनौती दे चुकी है और किसी नई जनहित याचिका की जरूरत नहीं है।
पीठ ने कहा याचिककर्ता से पूछा , ”आप यहां क्यों आए हैं… दिल्ली सरकार पहले ही इसे चुनौती दे चुकी है।” पीठ ने कहा, वह याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाने पर विचार कर सकती है और इसके कारण जनहित याचिका वापस ले ली गई।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त को दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार के अध्यादेश को चुनौती देने वाली अपनी याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी थी क्योंकि अब अध्यादेश दोनों सदनों से पास होने और राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद कानून बन चुका है।
संसद ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक 2023 को मंजूरी दे दी, जिसे दिल्ली सेवा विधेयक भी कहा जाता है, जिसने उपराज्यपाल को सेवा मामलों पर व्यापक नियंत्रण दिया। राष्ट्रपति की सहमति के बाद यह विधेयक कानून बन गया।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने केंद्र के 19 मई के अध्यादेश को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था। केंद्र ने 19 मई को दिल्ली में ग्रुप-ए अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के लिए एक प्राधिकरण बनाने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 लागू किया था।