दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2001 में एक समाचार पोर्टल के “कथित खुलासे” के कारण प्रतिष्ठा को हुई क्षति के एवज में भारतीय सेना के एक अधिकारी को 2 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया है। इस कथित खुलासे में रक्षा खरीद से संबंधित भ्रष्टाचार में उनकी संलिप्तता का झूठा आरोप लगाया गया था।
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने मेजर जनरल एम एस अहलूवालिया द्वारा दायर मुकदमे पर फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि तहलक डॉट कॉम, इसके मालिक मेसर्स बफ़ेलो कम्युनिकेशंस, तरुण तेजपाल और दो पत्रकार, अनिरुद्ध बहल और मैथ्यू सैमुअल को मुआवजा राशि का भुगतान करेंगे।
न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि यह मामला एक ईमानदार सैन्य अधिकारी की प्रतिष्ठा को हुई गंभीर क्षति का स्पष्ट उदाहरण है और झूठी खबर के प्रकाशन के 22 साल बाद माफी अपर्याप्त और निरर्थक है।
अदालत ने कहा कि वादी मेजर जनरल जेएस अहलूवालिया को न केवल जनता की नजरों में शर्मसार होना पड़ा, बल्कि उसे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का भी सामना करना पड़ा, जिन्हें बाद में किसी भी खंडन से ठीक नहीं किया जा सका।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि सच्चाई बदनामी के खिलाफ सबसे अच्छा बचाव है, लेकिन यह उस प्रतिष्ठा को पूरी तरह से बहाल नहीं कर सकता है जो कोई व्यक्ति समाज की नजरों में खो देता है। मुआवज़ा मिलने पर भी किसी की प्रतिष्ठा पर लगा दाग हमेशा बना रहता है।
अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कि तहलका डॉट कॉम और उसके मालिकों को मानहानि के लिए मुकदमे की लागत के साथ 2,00,00,000/- रुपये (दो करोड़ रुपये) का हर्जाना देना ही होगा।
दरअसल, 13 मार्च, 2001 को तहलका डॉट कॉम समाचार पोर्टल ने नए रक्षा उपकरणों के आयात से संबंधित रक्षा सौदों में कथित भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए एक कहानी प्रकाशित की थी।
मेजर जनरल एम एस अहलूवालिया के वकील चेतन आनंद ने कोर्ट के सामने सबूत पेश किए कि तहलका डॉट कॉम की स्टोरी “ऑपरेशन वेस्ट एंड” के माध्यम से उन्हें बदनाम किया गया था क्योंकि यह गलत तरीके से प्रसारित किया गया था और बताया गया था कि उन्होंने रिश्वत ली थी।
अदालत ने प्रतिवादियों के “सच्चाई,” “सार्वजनिक हित” और “अच्छे विश्वास” के बचाव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि किसी ईमानदार व्यक्ति के लिए इससे बुरी मानहानि नहीं हो सकती है कि यह झूठा आरोप लगाया जाए कि उसने 50,000 रुपये की रिश्वत मांगी थी और स्वीकार की थी।