महज तीन साल की उम्र से ही बच्चों को स्कूल में भर्ती करने के नाम पर कथित स्क्रीनिंग के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका डाली गई है। इस याचिका में कहा गया है कि राजधानी के स्कूल स्क्रीनिंग के नाम पर तीन साल के बच्चों के साथ अनैतिक प्रथा अपना रहे हैं। याचिका में दिल्ली स्कूल शिक्षा संशोधन विधेयक को अंतिम रूप देने की भी मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि दिल्ली स्कूल शिक्षा (संशोधन) विधेयक, 2015 नामक एक बाल-सुलभ विधेयक स्कूलों में नर्सरी प्रवेश में स्क्रीनिंग प्रक्रियाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए पिछले 7 वर्षों से केंद्र और दिल्ली सरकारों के बीच बिना किसी औचित्य के और जनहित के खिलाफ लटका हुआ है। सार्वजनिक नीति का विरोध।
सोशल ज्यूरिस्ट नाम के एक एनजीओ ने याचिका में कहा है कि दिल्ली स्कूल शिक्षा (संशोधन) विधेयक, 2015 का उद्देश्य और उद्देश्य छोटे बच्चों को निजी स्कूलों में नर्सरी दाखिले के मामले में शोषण और अन्यायपूर्ण भेदभाव से बचाना है। लेकिन सरकार की यह कोशिश असफल होती दिख रही है।
याचिका में कहा गया है कि शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 किसी स्कूल में बच्चे के प्रवेश के मामले में स्क्रीनिंग प्रक्रियाओं को प्रतिबंधित करता है और इसे कानून के तहत दंडनीय अपराध बनाता है। हालांकि, 2009 का आरटीई अधिनियम, 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर लागू नहीं होता है और इसलिए नर्सरी कक्षा में प्रवेश पर लागू नहीं होता है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि लोगों को यह जानने का अधिकार है कि 2015 में दिल्ली विधानसभा से सर्वसम्मति से पारित होने के 7 साल बाद भी बाल-सुलभ विधेयक क्यों नहीं बन पाया है।