दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को तिहाड़ जेल के अधीक्षक को निर्देश दिया कि वह आतंकी फंडिंग मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे यासीन मलिक को उचित चिकित्सा उपचार सुनिश्चित करें। मलिक का दावा है कि वह हृदय और किडनी की गंभीर समस्याओं से पीड़ित हैं।
केंद्र सरकार और जेल महानिदेशक (तिहाड़ जेल) के वकील ने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि याचिका में तथ्यों को गंभीर रूप से छुपाया गया है और मलिक अधिकारियों द्वारा दिए जा रहे इलाज को लेने से इनकार कर रहा है।
न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने केंद्र और डीजी (जेल) के वकील से यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पेश करने को कहा कि कैदी इलाज से इनकार कर रहा था और साथ ही संबंधित जेल अधीक्षक से अगली तारीख तक मलिक की मेडिकल रिपोर्ट पेश करने को कहा।
मलिक की याचिका में अधिकारियों को उनके इलाज का रिकॉर्ड पेश करने और उन्हें उचित और आवश्यक इलाज के लिए एम्स या यहां या जम्मू-कश्मीर के किसी निजी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में रेफर करने का निर्देश देने की मांग की गई है। ऐसा दावा किया गया है कि वो गंभीर हृदय और गुर्दे की बीमारियों से पीड़ित है। यह याचिका मलिक की ओर से उसकी मां आतिका मलिक के माध्यम से दायर की गई है।
याचिका पर अधिकारियों के वकील ने तर्क दिया कि मलिक एक “बहुत उच्च जोखिम वाला सुरक्षा कैदी” है और इसलिए, मेडिकल टीम को जेल में ही लाया जा सकता है, अदालत ने उन्हें लिखित रूप में अपना पक्ष रखने के लिए कहा ताकि इस पर विचार किया जा सके।
केंद्र और डीजी (जेल) का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील रजत नायर ने दलील दी कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था लेकिन मलिक ने जांच कराने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि आजकल जेल में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए डॉक्टरों से परामर्श लिया जा रहा है लेकिन कैदी शारीरिक रूप से अस्पताल जाना चाहता है।
उन्होंने कहा कि एम्स के वरिष्ठ प्रोफेसरों को निदान के लिए दो बार बुलाया गया था लेकिन उसने इनकार कर दिया और अधिकारी डॉक्टरों के साथ एक और परामर्श की व्यवस्था करने को तैयार हैं।
अदालत द्वारा यह पूछे जाने पर कि आपत्ति क्या है, मलिक के वकील ने कहा कि पहले उनका इलाज अन्य डॉक्टरों द्वारा किया जा रहा था और अचानक अधिकारियों ने डॉक्टरों को बदल दिया है और एक नया मेडिकल बोर्ड बनाया गया है। यासीन के वकील ने आगे कहा कि वह अपने मुवक्किल से निर्देश मांगेंगे कि क्या वह उसी डॉक्टरों के पैनल या अपनी पसंद के किसी अन्य समूह द्वारा जांच का विकल्प चुनना चाहेंगे। कोर्ट ने यासीन के वकीलों से कहा कि हमें कारण बताएं कि इन डॉक्टरों के पैनल की जांच करने में आपको पूर्वाग्रह महसूस होता है। हम डॉक्टरों के ख़िलाफ़ कुछ भी कैसे मान सकते हैं? न्यायाधीश ने यासीन के वकील से कहा, ” यह कि आप किसी विशेष डॉक्टर से इलाज कराना चाहते हैं, हमें इस पर आपत्ति है।”
सुनवाई के दौरान, नायर ने आगे कहा कि मलिक को अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उन्हें केवल ओपीडी रोगी के रूप में जांच करने की आवश्यकता है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि किसी मरीज को अस्पताल के अंदर जांच की आवश्यकता होती है तो इस बात पर जोर नहीं दिया जा सकता है कि उसकी जांच जेल में ही की जाएगी और अधिकारियों के वकील से इस संबंध में निर्देश प्राप्त करने को कहा क्योंकि कैदियों को भी स्वास्थ्य का अधिकार है।
इस पर नायर ने कहा, ‘कैदी को स्वास्थ्य का अधिकार देना राज्य का कर्तव्य है लेकिन वह बहुत उच्च जोखिम वाला सुरक्षा कैदी है और इसलिए मेडिकल टीम को जेल में ही लाया जा सकता है।’
अदालत ने कहा, “इस बीच, जेल अधीक्षक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता को आवश्यक कोई भी उपचार कानून के अनुसार जेल अस्पताल में उचित रूप से प्रदान किया जाए।”
यासीन मलिक को यहां की एक निचली अदालत ने 24 मई, 2022 को कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और आईपीसी के तहत विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक अपील दायर कर सजा को आजीवन कारावास से बढ़ाकर मृत्युदंड करने की मांग की है, जो अपराध के लिए अधिकतम सजा है।