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पीएम मोदी और उनकी दिवंगत मां को अपशब्द लिखने वाले की जमानत निरस्त

Gujarat High Court

गुजरात उच्च न्यायालय ने हाल ही में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी दिवंगत मां हीराबेन मोदी के खिलाफ अपशब्द बोलने के आरोपी की जमानत बढ़ाने से इंकार कर दिया।  उच्च न्यायालय ने कहा की पीएम मोदी को पसंद, और नापसंद करने के लिए हर व्यक्ति स्वतंत्र है,लेकिन किसी को उनके और उनकी दिवंगत मां के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। दॉ

इस मामले की शिकायत 31दिसंबर 2022 को देवुभाई गढवी ने जामनगर के सिक्का पुलिस स्टेश में दर्ज़ कराई गयी थी। जहा उन्होंने आरोप लगाया की अफसल भाई और कसमभाई  ने सोशल मीडिया के फेसबुक पेज पर लिखा था ‘गुजरात त्रस्त बीजेपी मस्त इसके अलावा  उसमे पीएम मोदी और उनकी दिवंगत मां के खिलाफ आपत्तिजनक और अश्लील सामग्री पोस्ट की गईं।

देवुभाई गढवी की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मानहानि, अभद्र भाषा, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, अश्लीलता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों के साथ अन्य प्रसांगिक प्रावधानों के लिए मामला दर्ज किया।

गुजरात उच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई कर रहे कर न्यायधीश निर्जर देसाई की अपनी एकल पीठ कहा – कि किसी व्यक्ति की पसंद और नापसंद हो सकती है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो देश के प्रधानमंत्री, उनकी दिवगंत मां के खिलाफ आपत्ति जनक टिप्पणी और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करे।

न्यायालय ने आरोपी की वीडियो में यह भी पाया की वह पाकिस्तान समर्थक और भारत विरोधी पोस्ट भी शेयर करता था। जिसके चलते न्यायालय ने कि आरोपी द्वारा डाले गए वीडियो संप्रदायिक सद्भाव को और समाज में अशांति पैदा कर सकते है। ये सब पोस्ट केवल देश के नेता की छवि को खराब करने के लिए नहीं बल्कि  किसी छिपे हुए एजेंडे का हिस्सा हो सकता है।
न्यायालय ने कहा है कि  ऐसे व्यक्ति को जमानत दी जाती है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह एक बार फिर से किसी अन्य नाम का उपयोग करके और फर्जी आईडी बनाकर ऐसा अपराध कर सकता हैठ क्योंकि तकनीक  बहुत उन्नत हो चुकी है।  एक बार अगर ऐसे व्यक्ति को समाज में स्वतंत्र रूप से घूमने की अनुमति दे दी गईं, तो वो सोशल मीडिया पर उसकी पोस्ट से नुकसान कर सकता है।  एक बार नुकसान हो जाने के बाद, उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने और उसे दंडित करने का कोई मतलब नहीं होता क्योंकि जब तक ऐसे व्यक्ति की पहचान की जाती है, तब तक बड़ा नुकसान गड़बड़ी के रूप में पहले ही हो चुका होगा। इन परिस्थितियों मे  न्यायालय  आरोपी पर कोई नरमी नहीं दिखाते हुए आरोपी की जमानत निरस्त करने का आदेश देती है।

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About the Author: Yogdutta Rajeev

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