बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि टायर फटना ईश्वर का कार्य नहीं बल्कि मानवीय लापरवाही है। यह कहते हुए कोर्ट ने एक कार दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिवार को मुआवजे के खिलाफ एक बीमा कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति एसजी डिगे की एकल पीठ ने अपने आदेश में न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के 2016 के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। इस फ़ैसले में पीड़ित मकरंद पटवर्धन के परिवार को 1.25 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। दरसअल 25 अक्टूबर, 2010 को 38 साल के पटवर्धन अपने दो साथियों के साथ पुणे से मुंबई जा रहे थे।
पटवर्धन का सहयोगी जो कार का मालिक था तेज और लापरवाही से ड्राइविंग कर रहा था तभी पिछला पहिया फट गया और कार गहरी खाई में गिर गई। इस कार हादसे में मकरंद पटवर्धन की मौके पर मौत हो गई। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा कि पीड़ित अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला शख्स था, जबकि बीमा कंपनी ने अपनी अपील में कहा कि मुआवजे की राशि अत्यधिक और हद से अधिक थी। बीमा कंपनी ने दलील दी कि टायर फटना ईश्वर का कार्य था न कि चालक की ओर से लापरवाही।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस विवाद को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि ‘यह एक गंभीर अप्रत्याशित प्राकृतिक घटना को संदर्भित करता है, जिसके लिए कोई भी इंसान जिम्मेदार नहीं है. टायर के फटने को ईश्वर का कार्य नहीं कहा जा सकता है। कोर्ट ने कहा यह मानवीय लापरवाही का मामला है।’ कोर्ट ने अपने आदेश में कहा टायर फटने के कई कारण हैं, जैसे कार की तेज रफ्तार, टायर में कम हवा, ज्यादा हवा या सेकेंड हैंड टायर और तापमान।
इतना ही नही कोर्ट ने यह भी कहा कि ‘वाहन के चालक या मालिक को यात्रा करने से पहले टायर की स्थिति की जांच करनी होती है और टायर के फटने को प्राकृतिक कृत्य नहीं कहा जा सकता। यह केवल मानवीय लापरवाही है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केवल टायर फटने को ईश्वरीय कृत्य कहना बीमा कंपनी को मुआवजा देने से बचने करने का आधार नहीं हो सकता।