उड़ीसा उच्च न्यायालय ने हाल ही में दो लोगों के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज आरोपों को खारिज कर दिया।
उड़ीसा उच्च न्यायालय की एकल पीठ के न्यायमूर्ति आर.के. पटनायक ने कहा कि जब तक पीड़ित का अपमान या अपमान करने का इरादा नहीं होता तब तक अनुसूचित जाति – अनुसूचित जनजाति (पीओए) अधिनियम के तहत एक अपराध नहीं कारित नहीं माना जा सकता। यदि पीड़ित की जाति का नाम को उच्चारण किया जाता है तो यह साधारण घटना है। किसी को अपमानित करना नहीं।
पीठ ने यह भी कहा कि जिस व्यक्ति ने दावा किया है कि उसकी जाति के कारण याचिकाकर्ताओं द्वारा मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किया गया था, उसने मामला दायर नहीं किया था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, शिकायतकर्ता 2017 में घर लौट रहा था जब याचिकाकर्ताओं-अभियुक्तों द्वारा उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया, उस पर हमला किया गया और उसे आतंकित किया गया। इसने अन्य लोगों को घटनास्थल पर पहुंचने और शिकायतकर्ता को बचाने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया।
याचिका के अनुसार पीड़िता को अवैध रूप से डराया और उसकी जाति पर सवाल उठाए यह भी किसी साक्ष्य या गवाह के बयान से साबित नही होते।
हालांकि एससी/एसटी अधिनियम के आरोपों को खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत नुकसान पहुंचाने और आपराधिक धमकी सहित अन्य आरोपों को खारिज करने से इनकार कर दिया।