मणिपुर सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसने जातीय हिंसा से जूझ रहे राज्य में “सभी स्रोतों” से हथियारों की बरामदगी के संबंध में एक स्थिति रिपोर्ट दायर की है।
राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ को सूचित किया कि रिपोर्ट दायर कर दी गई है। उन्होंने इस मामले पर एक और संक्षिप्त हलफनामा दाखिल करने का भी जिक्र किया।
मेहता ने पीठ को सूचित किया कि हलफनामे में कहा गया है कि “बहस के मुद्दों को पहले ही (शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त) समिति के ध्यान में लाया जा चुका है,” जो वर्तमान में समीक्षा कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले मणिपुर में जातीय हिंसा के पीड़ितों के लिए राहत और पुनर्वास प्रयासों की निगरानी के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल के नेतृत्व में न्यायाधीशों की एक समिति नियुक्त की थी।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रही वकील वृंदा ग्रोवर ने पीठ को सूचित किया कि मई में मणिपुर में सामूहिक बलात्कार और हत्या की शिकार दो महिलाओं के शव अभी तक उनके परिवारों को नहीं दिए गए हैं। मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति पहले ही इस पर ध्यान दे चुकी है और अधिकारियों को निर्देश जारी कर चुकी है।पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 25 सितंबर को तय की हैं।
इससे पहले, 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को राज्य में “सभी स्रोतों” से हथियारों की बरामदगी पर एक स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। यह निर्देश अदालत ने तब दिया था जब उन्हें बताया गया की अवैध हथियारों के अलावा, मणिपुर में पुलिस स्टेशनों और सेना डिपो से बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद चोरी हो गए थे।
मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि हथियारों की बरामदगी पर स्थिति रिपोर्ट केवल अदालत को उपलब्ध होनी चाहिए। पीठ ने अतिरिक्त निर्देश भी जारी किए, जिसमें केंद्रीय गृह सचिव को समिति की सहायता के लिए विशेषज्ञों के चयन को अंतिम रूप देने के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मित्तल के साथ समन्वय करने का निर्देश देना शामिल है।
मणिपुर मई से हिंसा से जूझ रहा है, जो उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद भड़का है, जिसमें राज्य सरकार को गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया गया है। इस निर्णय के कारण बड़े पैमाने पर जातीय झड़पें हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 160 से अधिक लोग मारे गए और कई घायल हुए। मेइतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान 3 मई को हिंसा शुरू हुई थी।