मीडिया-न्यायपालिका और नौकरशाही उस मूल तथ्य को क्यों छिपा रही है जो उसे जज बनने से रोक रहा है?
मेरी नजर में यह आधा सच है कि वह गे है या वह पुरुष में स्त्री है। सही तथ्य यह है कि उसका (उसका) भारतीय बॉय फ्रेंड नहीं है। उसका (उसका) बॉयफ्रेंड एक स्विस नागरिक है जो भारत में एक अंतर्राष्ट्रीय मिशन के साथ काम कर रहा है।
सवाल उठता है कि क्या विदेशी नागरिक से शादी करने वाला पुरुष-महिला या टीजी संवैधानिक जिम्मेदारी संभाल सकता है? नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 (आई) (सी) के अनुसार किसी भी विदेशी नागरिक को भारतीय नागरिकता लेने की अनुमति देता है. इस औपचारिकता के बाद वह स्वयं या उनके गे पति या पत्नी संवैधानिक जिम्मेदारियों को संभाल सकते हैं। लेकिन सौरभ किरपाल के मामले में, रोड़ा यहां अटक रहा है कि उसने दिल्ली में काम करने वालेअपने स्विस मर्द प्रेमी के साथ शादी नहीं की है।
यद्यपि दोनों 20 साल से लाइफ पार्टनर की तरह रह रहे हैं। एक बार सौरभ किरपाल किरपाल अपनी शादी की घोषणा स्विस बॉयफ्रेंड निकोलस जर्मेन बाचमैन से करने का ऐलान कर दें। शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट में रजिस्टर्ड करवा लें और निकोलस भारतीय नागरिकता लेलें तो किसी के पास कहने के लिए कुछ नहीं रह जाएगा। कोई तथाकथित आरोप नहीं लगाया जा सकता (यदि कोई है भी तो)। मेरी नजर में शादी सोलोमनाइज करने के बाद सौरभ कृपाल गर्व के साथ ऑफिस संभाल सकते हैं।
सौरभ किरपाल के पिता रिटायर्ड चीफ जस्टिस रहे हैं, सौरभ खुद बड़ी वकील हैं।उन्होंने खुद को गे वकील बताने का साहस किया है। उन्होंने स्वीकारा है कि वो गे हैं। तो उन्हें संविधानिक जिम्मेदारी उठाने से पहले अपने निजी संबंधो को लेकर विधिक औपचारिकताएँ पूरी क्यों नहीं कर लेनी चाहिए?
अंत में दो- प्रश्न क्या वो इस मुद्दे को इसी तरह जीवित रखकर विश्वव्यापी प्रचार हासिल करना चाहती हैं या भारतीय ज्यूडिशियरी और विधायिका-कार्यपालिका में विवाद को बढ़ावा देना चाहती हैं।
भारत की सनातन परंपरा में ‘राजा मांधाता’ का उदाहरण तो सौरभ कृपाल पर कुछ-कुछ ठीक बैठता है।
महाभारत के शिखण्डी राजकुमार की कथा तो पूरी सही उतरती है। मांधाता की तरह शिखंडी ने अपने लिंगभेद को सारे जग के सामने स्पष्ट रखा था और उस समय के समाज ने दोनों समलैंगिकों को राजा और राजकुमार के सभी अधिकार-सम्मान प्राप्त थे। यह तो हजारों साल पहले की कहानी है
भारत की सनातन परंपरा में ‘राजा मांधाता’ का उदाहरण तो सौरभ कृपाल पर कुछ-कुछ ठीक बैठता है।
महाभारत के शिखण्डी राजकुमार की कथा तो पूरी सही उतरती है। मांधाता की तरह शिखंडी ने अपने लिंगभेद को सारे जग के सामने स्पष्ट रखा था और उस समय के समाज ने दोनों समलैंगिकों को राजा और राजकुमार के सभी अधिकार-सम्मान प्राप्त थे। यह तो हजारों साल पहले की कहानी है। तो आज संभव क्यों नहीं है।
वकील से जज बनने के आधे रास्ते में सौरभ किरपाल के सामने आधे सच और आधे झूठ की कहानी है। ग्लास आधा भरा या आधा खाली। सौरभ किरपाल जज बनना चाहते हैं तो प्रेमी पति के साथ शादी रचाएँ, रजिस्टर्ड करवाएं, और पति को भारत की नागरिकता दिलवाएं, फिर ठाठ से जज साहब की कुर्सी संभालने के लिए सन्नद्ध हो जाएं। सभी की समस्या खत्म हो जाएगी।
और अगर सौरभ किरपाल और फिलहाल शादी उचित नहीं लिवइन पार्टनर ही रहेंगे कुछ दिन और तो प्रस्तावकों के पास विनम्र संदेश भेजें की कि उनका नाम जजशिप के लिए अग्रसारित न किया जाए। कर दिया है तो वापस ले लिया जाए। इस परिस्थिति में भी सभी समस्या खत्म आप भी स्विट्जरलैण्ड घूम आइए।