सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण खत्म करने के कर्नाटक सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को तल्ख टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर नेताओं के बयानों पर सवाल उठाते हुए हुए कहा जब मामला लंबित हो तो ऐसे बयान नहीं दिए जाने चाहिए। वही याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि हर दिन नेता/ मंत्री कहते हैं कि हमने खत्म कर दिया है। SG मेहता उसी पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं, यह अवमानना है। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि मैं राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं दे सकता।
जस्टिस जस्टिस B.V नागरत्ना ने कहा कि अगर यह सच है तो ऐसे बयान क्यों दिए जा रहे हैं? सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों द्वारा ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। जब मामला लंबित हो और इस न्यायालय के समक्ष हो, तो इस तरह के बयान नहीं दिए जाने चाहिए। हालांकि एसजी के कहने पर अदालत ने सुनवाई 25 जुलाई तक टाल दी है।
सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें श्रेणी 2 बी के तहत मुसलमानों को प्रदान किए गए लगभग तीन दशक पुराने 4% ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया गया था।
कर्नाटक सरकार ने 4% आरक्षण को समाप्त कर दिया और इसे वीरशैव-लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के बीच समान रूप से 2% पर वितरित कर दिया। पिछली सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने वोक्कालिगा और लिंगायत समूहों की ओर से तर्क दिया कि मुद्दा केवल आरक्षण को रद्द करने का नहीं है बल्कि एक अलग समुदाय को आरक्षण आवंटित करने का भी है। उन्होंने दावा किया कि जीओ पर अंतरिम रोक लगाने से लिंगायतों और वोक्कालिगाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
इससे पहले अदालत ने कहा था कि राज्य में मुस्लिम लंबे समय से इस आरक्षण का लाभ उठा रहे थे और कोटा खत्म करने का आदेश प्रथम दृष्टया गलत धारणाओं पर आधारित था। राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा था कि आपके फैसले की बुनियाद ‘त्रुटिपूर्ण और अस्थिर’ लगती है।
दरसअल बेल्लारी के रहने वाले एक मुस्लिम व्यक्ति के राज्य सरकार के मुस्लिम कोटा खत्म करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।