सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के समलैंगिक विवाह के विरोध में 23 अप्रैल को खुली चिट्ठी लिखने और इसकी प्रेस विज्ञप्ति जारी करने का विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट बार की कार्यकारिणी समिति ने बहुमत से पारित प्रस्ताव में कहा है कि कोई भी मामला सुप्रीम कोर्ट तक आता है तो ये कोर्ट का न्यायिक क्षेत्राधिकार है कि वो उसे सुने और मेरिट के आधार पर उसका समुचित निपटारा करे या निर्णय दे। कोर्ट तय करे कि मामला कोर्ट से निर्णित होगा या संसद से। उसमें किसी अन्य पक्ष को दखल देने या देने का प्रयास नहीं करना चाहिए। लिहाजा सुप्रियो बनाम भारत सरकार मामले में बार काउंसिल यानी भारतीय विधिज्ञ परिषद का दखल अनुचित और गैर जरूरी है।
दरसअल केंद्र सरकार के बाद अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है।इसी सोमवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने विरोध करते हुए एक प्रस्ताव भी पारित किया है। बीसीआई ने अपने प्रस्ताव में कहा है, इस तरह के संवेदनशील विषय पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भविष्य की पीढ़ियों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है और इसे विधायिका के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए।
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि ,‘‘भारत विभिन्न मान्यताओं को संजो कर रखने वाले विश्व के सर्वाधिक सामाजिक-धार्मिक विविधता वाले देशों में से एक है। इसलिए, बैठक में आम सहमति से यह विचार प्रकट किया गया कि सामाजिक-धार्मिक और धार्मिक मान्यताओं पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला कोई भी विषय सिर्फ विधायी प्रक्रिया से होकर आना चाहिए।” सभी राज्य बार काउंसिल के प्रतिनिधियों की भागीदारी वाली संयुक्त बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया।
दरसअल देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों की संविधान पीठ कर रही है। 3 मई इस मामले में आखिरी बहस अदालत में शुरू होगी।