सुप्रीम कोर्ट की जज, जस्टिस बेला त्रिवेदी ने मंगलवार को गुजरात दंगा पीड़ित बिलकिस बानो की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। जिसके बाद मामले की सुनवाई आज टल गईं।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस अजय रस्तोगी की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि जस्टिस बेला एम त्रिवेदी मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर रही है।
जस्टिस अजय रस्तोगी ने ये भी कहा कि, “मामले को उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें जिसमें हम में से कोई सदस्य नहीं हो।”
बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचीका दाखिल कर गुजरात सरकार द्वारा अपने बलात्कारियों को क्षमादान करने के फैसले को चुनौती दी है।
साल 2008 में बिलकिस बानो का गैंग रेप कर उसके परिवार के लोगों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को गुजरात की अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन बाद में गुजरात सरकार ने राज्य की 1992 की छूट नीति (रेमिशन पालिसी) के तहत समयपूर्व रिहाई प्रदान की।
इससे पहले गुजरात सरकार ने दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था सभी दोषियों को छूट नीति के तहत जेल से रिहा कर दिया गया है।
बिलकिस बानो के 11 दोषियों को 15 अगस्त को रिहा किया गया था, जिनमें से एक, राधेश्याम शाह ने अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, और कोर्ट में तर्क दिया था कि इस मामले में वो पहले ही जेल सज़ा काट चुका है।
मई में, शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को 1992 की नीति के अनुसार उनकी याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया था ।जबकि 2014 की नवीनतम छूट नीति बलात्कार के दोषियों की जल्द रिहाई पर रोक लगाती है,हालाँकि 1992 की नीति में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं था। इस मामले में 2008 में 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. गुजरात सरकार ने रिहाई के संबंध में निर्णय लेने के लिए एक समिति का गठन किया था। इस समिति की रिपोर्ट पर सरकार ने सभी दोषियों को राज्य की 1992 की छूट नीति (रेमिशन पालिसी) के तहत रिहा कर दिया।
वर्ष 2002 में गुजरात के गोधरा दंगों के बाद बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। उनके परिवार के 7 लोगों की भी हत्या कर दी गई थी।