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सियासत में धार्मीक चिन्हो का उपयोग : AIMIM के चीफ ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जवाब

धार्मिक चिन्हों और धार्मिक नाम का इस्तेमाल करने वाली राजनीतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने से रोकने और मान्यता रद्द करने की याचिका पर असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM ने जवाब दाखिल किया है।

असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM और (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) IUML ने याचिकाकर्ता वसीम रिजवी पर सवाल उठाते हुए कहा कि सिर्फ मुस्लिम पार्टियों पर निशाना साधा गया। दरअसल जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिज़वी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर ऐसे राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग किया है जो पार्टी के नाम में धार्मिक नाम या धार्मिक चिन्हों का इस्तेमाल करते है।

असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने सुप्रीम कोर्ट में एक जवाबी हलफनामा में कहा है की पार्टी के नाम में केवल ‘मुस्लिमीन’ शब्द का उल्लेख धर्म के आधार पर मतदाताओं से कोई विशेष अपील नहीं करता, इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।

जवाब में यह भी कहा गया है कि AIMIM के संविधान में इसके सदस्यों को धर्म के नाम पर वोट मांगने का जिक्र या निर्देश नहीं है, बल्कि, इसकी सदस्यता सभी व्यक्तियों के लिए उनकी जाति, पंथ या धर्म के बावजूद खुली है

60 साल पुरानी पार्टी का मुख्य उद्देश्य और उद्देश्य भारत में अल्पसंख्यकों और अन्य वंचित वर्गों के सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक लोकाचार की रक्षा करना है।विशेष रूप से हैदराबाद और इसके आसपास के क्षेत्र में।

पार्टी ने दावा किया है कि वह अन्य कल्याणकारी उपायों को भी करने के लिए तैयार है, जैसे समाज के भीतर शिक्षा को बढ़ावा देना आदि।उसने जनप्रतिधित्व कानून के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया है, याचिकाकर्ता किसी भी विशिष्ट उदाहरण का उल्लेख करने में विफल रहा है,पार्टी ने आगे कहा है कि जनहित याचिका प्रेरित है और याचिकाकर्ता सैयद वसीम रिजवी राजनीतिक दलों के साथ अपने जुड़ाव का खुलासा करने में विफल रहे। याचिकाकर्ता समाजवादी पार्टी (उत्तर प्रदेश में राज्य पार्टी) के पूर्व सदस्य हैं और उन्होंने लखनऊ में कश्मीरी मोहल्ला वार्ड से वर्ष 2008 में निगम चुनाव लड़ा और जीता था
वर्तमान में, ऑनलाइन उपलब्ध रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता को उत्तर प्रदेश राज्य में एक अन्य राजनीतिक दल के करीबी के रूप में जाना जाता है।

यह भी कहा गया है कि याचिकाकर्ता कई विवादों में फंसा हुआ है और हाल ही में कई  FIR  के सिलसिले में न्यायिक हिरासत में था,पूरी याचिका हेट स्पीच के घोषणापत्र से ज्यादा कुछ नहीं है।याचिका की भाषा के साथ-साथ इसमें बताए गए असत्यापित तथ्य दो समुदायों के बीच विभाजन पैदा करने के प्रयास की तरह प्रतीत होते हैं।

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About the Author: Meera Verma

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