दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत ने 2020 में दर्ज राजद्रोह मामले में वैधानिक जमानत की मांग करने वाली शरजील इमाम की याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है की कार्यवाही राजद्रोह के अपराध से संबंधित है और यूएपीए के तहत अपराधों में अधिकतम सजा सात साल है। वह जनवरी 2020 से हिरासत में है, जो यूएपीए के तहत अपराध के लिए अधिकतम सजा का आधा है।
यह तर्क दिया गया है कि वह इस मामले में 28 जनवरी 2020 से हिरासत में है और कारावास के तहत 3 साल और 6 महीने से अधिक की अवधि पूरी कर चुका है।
कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) अमिताभ रावत ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया और जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अमित प्रसाद ने नोटिस स्वीकार कर लिया और जमानत अर्जी पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। जिसके बाद अदालत ने मामले को 11 सितंबर को सूचीबद्ध किया गया है।
अधिवक्ता अहमद इब्राहिम और तालिब मुस्तफा ने शरजील इमाम की ओर से एक आवेदन दायर कर सीआरपीसी की धारा 436ए में निहित वैधानिक प्रावधानों के संदर्भ में वर्तमान आपराधिक अभियोजन से उनकी तत्काल रिहाई की मांग की थी।
याचिका में कहा गया है की इस मामले में उसे 28 जनवरी 2020 को उसके गृहनगर जहानाबाद, बिहार से गिरफ्तार किया गया था और उसे पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया था। तब से पुलिस पूछताछ के बाद से वह न्यायिक हिरासत में हैं। इस मामले में जांच समाप्त हो गई है और इस मामले में आईपीसी की धारा 124ए, 153ए, 153बी, 505 और आईपीसी की धारा 13 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आवेदक के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट/चार्जशीट 25 जुलाई 2020 को दायर की गई है।
याचिका में कहा गया है कि अदालत ने 29 जुलाई 2020 को आईपीसी की धारा 124ए, 153ए, 1538 और 505 और 19:12 2020 को यूएपीए की धारा 13 के तहत भाषणों/अपराधों का संज्ञान लिया।
इसके बाद, अदालत द्वारा 15 मार्च 2022 को आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए, 153ए, 153बी और 505 के तहत औपचारिक रूप से आरोप तय किए गए।
इसमें कहा गया है कि अदालत ने आईपीसी की धारा 124ए के क्रियान्वयन और उससे होने वाली सभी कार्यवाहियों पर प्रभावी ढंग से रोक लगाने का निर्देश पारित किया था।
याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि धारा 13 यूएपीए के तहत निर्धारित 7 साल तक की अधिकतम सजा के अनुसार, आवेदक ने कानून द्वारा संबंधित अपराध के लिए निर्दिष्ट कारावास की अधिकतम अवधि का आधा हिस्सा पूरा कर लिया है और इसलिए, वैधानिक जमानत का हकदार है।