नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की की प्रधान पीठ ने नर्मदा नदी प्रदूषण मामले में मध्य प्रदेश के प्रमुख सचिव, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और मध्य प्रदेश के अन्य शीर्ष अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का हुक्म सुनाया है।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी (न्यायिक सदस्य) और डॉ अफरोज अहमद (विशेषज्ञ सदस्य) की खंडपीठ के अनुसार,
“इस ट्रिब्यूनल के समक्ष कार्यवाही को प्रतिकूल मुकदमेबाजी के हिस्से के रूप में नहीं माना जा सकता है। अगर वो पेश नहीं होते हैं तो उन्हें एकतरफा कार्यवाही का सामना करना पड़ सकत है ।
ट्रिब्यूनल ने कहा कि क्योंकि मध्य प्रदेश राज्य और उसके तंत्र उसके सामने उपस्थित नहीं हुए हैं या उन्हें दिए गए नोटिसों का जवाब नहीं दिया है, यह मध्य प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव और महाधिवक्ता को सूचित करना आवश्यक समझता है। ट्रिब्यूनल ने उन्हें निर्देश दिया कि वे ट्रिब्यूनल के नोटिस का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उचित निर्देश जारी करें, रें और ट्रिब्यूनल के समक्ष अपने अधिकृत प्रतिनिधि के माध्यम से पेश हों।
दरअसल, मध्य प्रदेश के डिंडोरी में नर्मदा नदी के पर्यावरण को गंभीर नुकसान के बारे में चिंता जताते हुए समयक जैन (और अन्य) द्वारा एक आवेदन दायर किया है। आवेदकों के अनुसार, करोड़ों रुपये की धनराशि खर्च किए जाने के बाद भी अधिकारी नर्मदा नदी में अनुपचारित सीवेज और नाली के पानी के निर्वहन को रोकने में विफल रहे हैं।
आवेदकों ने ट्रिब्यूनल से मध्य प्रदेश राज्य और स्थानीय अधिकारियों के खिलाफ कई आदेश जारी करने के लिए कहा था, जिसमें नदी में अनुपचारित सीवेज के निर्वहन पर रोक और नदी के किनारे पेड़ काटने पर रोक लगाना शामिल था।
सितंबर 2022 में, ट्रिब्यूनल ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट, 2010 की अनुसूची (एक) में सूचीबद्ध अधिनियमों के कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले आवेदनों में पर्यावरणीय आरोपों पर विचार किया। आवेदन में लगाए गए आरोपों के आलोक में, एनजीटी ने जांच के लिए एक संयुक्त समिति का गठन किया था।