दिल्ली की साकेत फैमिली कोर्ट ने हाल ही में एक मां को उसके नाबालिग बेटे द्वारा मासिक भरण-पोषण की मांग को लेकर दायर याचिका के संबंध में नोटिस जारी किया।
मां भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में नर्स के पद पर कार्यरत हैं। नाबालिग याचिकाकर्ता अपने पिता के साथ रहता है जो एक वकील हैं।
फैमिली कोर्ट के जज प्रीतम सिंह ने नाबालिग की मां को नोटिस जारी कर 60,000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण की मांग की है। मामले को आगे की सुनवाई के लिए 9 दिसंबर, को सूचीबद्ध किया गया है।
नाबालिग के पिता ने वकील आबिद अहमद और मोबिना खान के माध्यम से अपने बेटे के लिए याचिका दायर की है। दरअसल याचिकाकर्ता 14 साल का है और एक निजी स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ता है। उनका जन्म दिसंबर 2008 में हुआ था।
आरोप है कि मां न केवल नाबालिग बच्चे की उपेक्षा करने की दोषी है, बल्कि जब बच्चा केवल 40 दिन का था, तब उसे खुली सड़क पर उसे छोड़ देने की भी आरोपी है।
याचिका में कहा गया है कि पिछले डेढ़ दशक से अधिक समय से न तो मां ने बच्चे की देखभाल की है और न ही बच्चे के कल्याण के लिए सुलह के कोई प्रयास किए हैं।
यह भी कहा गया है कि उनके पिता प्रति माह 11,000 रुपये स्कूल फीस और भोजन, कपड़े, अध्ययन सामग्री आदि पर 40,000 रुपये का भुगतान कर रहे हैं। वह एक लाख रुपये का बीमा प्रीमियम भी भरते हैं।
याचिका में कहा गया कि प्रतिवादी द्वारा दहेज से संबंधित झूठा और तुच्छ मामला दायर करने के कारण याचिकाकर्ता के पिता मानसिक रूप से परेशान थे और काम करने में असमर्थ थे।
वह सारा समय छोटे बच्चे और बूढ़े माता-पिता की देखभाल में बिताते थे। इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता अपनी आजीविका नहीं चला सकते। याचिकाकर्ता के पिता पर उसके बूढ़े माता-पिता का भी दायित्व है।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के पिता पिछले 14 वर्षों से अकेले ही नाबालिग बच्चे के पालन-पोषण की देखभाल कर रहे हैं और प्रतिवादी की मां द्वारा कोई मदद नहीं की जा रही है।यह भी कहा गया है कि पिता जूनियर वकील हैं और मां एम्स में सीनियर नर्स हैं और प्रति माह दो लाख रुपये कमाती हैं।याचिकाकर्ता की मां ने पहले ही दहेज से संबंधित एक मामला दायर किया है और वह दिल्ली की तीस हजारी अदालत में लंबित है।