सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (2 फरवरी) को एक लॉ ग्रेजुएट की याचिका पर उत्तर प्रदेश राज्य बार काउंसिल को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। याचिका ने बार काउंसिल द्वारा वसूले जाने वाले नामांकन शुल्क को चुनौती दी है।
याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से पक्षकार के रूप में उपस्थित होकर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ को बताया कि यूपी बार में नामांकन कराने के लिए वकीलों के लिए 16,665 रुपये का शुल्क वसूला जा रहा है, अगर वो नामांकन की प्रक्रिया को जल्दी करवाना चाहते हैं तो 5000 रुपये का शुल्क लिया जाता है। याचिकाकर्ता ने इस शुल्क को “अत्यधिक” बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
जब CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता से आदर्श राशि के बारे में पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, अधिवक्ता अधिनियम के अनुसार अधिकतम 750 रुपये ही वसूला जाना चाहिए। याचिकाकर्ता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से विधि स्नातक है।
दरअसल, अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 24(1)(एफ) के तहत राज्य बार काउंसिल को देय नामांकन शुल्क 600 रुपये निर्धारित है। याची अधिवक्ता के तर्क से सहमत होते हुए सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश बॉर काउंसिल को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश भी जारी कर दिए।
पिछली सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए, अधिवक्ता अधिनियम के तहत निर्दिष्ट राशि से अधिक नामांकन शुल्क लेने के लिए बार काउंसिल पर सवाल उठाया था। पीठ ने कहा कि विभिन्न राज्यों में नामांकन शुल्क एक समान नहीं है। उदाहरण के लिए, ओडिशा में, यह 42,100 रुपये है, गुजरात में यह 25,000 रुपये है,उत्तराखंड में यह 23,650 रुपये है, झारखंड में यह 21,460 रुपये और केरल में यह 20,000 रुपये है। पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने नामांकन शुल्क को चुनौती देने वाली विभिन्न उच्च न्यायालयों में दायर याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित कर लिया था।