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बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, सास-ससुर के मैनटेनेंस भुगतान की जिम्मेदारी विधवा बहू की नहीं

Parents in Law

बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने अपने एक फैसले में कहा कि एक विधवा बहू को सास-ससुर (अपने मरे हुए पति के माता-पिता) को मैनटेनेंस के लिए भुगतान करने की जरूरत नहीं है। जस्टिस किशोर संत की सिंगल बेंच ने 30 साल की महिला शोभा तिडके की याचीका पर फैसला सुनाया। शोभा तिडके ने लातूर की एक निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

लातूर की एक निचली अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि महिला को रखऱखाव के लिए अपने मरे हुए पति के माता-पिता को भुगतान करना होगा।

दरसअल शोभा के पति महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन में काम करते थे, जिनकी बाद में उनकी मौत हो गई थी।  जिसके बाद उनकी पत्नी शोभा ने सरकारी हॉस्पिटल जेजे हॉस्पिटल मुंबई में काम करना शुरू किया। 68 साल के किशन राव टिडके और 60 साल की कांताबाई तिड़के, शोभा के सास-ससुर हैं। इन दोनों ने अदालत में दावा किया कि उनके पास कमाई का कोई और जरिया नहीं है। इसी वजह से उन्होंने अपने मैनटेनेंस के लिए पैसों की मांग की थी।

वहीं शोभा तिडके ने हाई कोर्ट में दावा किया कि उनके सास-ससुर के पास गांव में जमीन और अपना एक घर है, और पति की मौत के बाद उन्हें ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से 1.88 लाख रुपये भी दिए गए थे। इस दलील के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जो जॉब शोभा कर रही हैं वह अनुकम्पा के जरिए नहीं दी गई है।

कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि मृतक के माता-पिता के पास गांव में घर और जमीन भी है, और उन्हें उनके बेटे की मौत के बाद ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से भी मुआवजा भी मिला था। कोर्ट ने इन सभी दलीलों को मानते हुए कहा कि माता-पिता के पास कोई ठोस आधार नहीं है कि वह महिला से मैंनटेनेंस की मांग करें।

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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