सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संकेत दिया कि वह अदालतों द्वारा सरकारी अधिकारियों को तलब करने के लिए कुछ दिशानिर्देश बनाएगा। शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए की, जिसके तहत अदालत के निर्देश का पालन न करने पर दो वरिष्ठ अधिकारियों को हिरासत में लेने का निर्देश दिया गया था।
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि सरकार मुकदमे में अदालतों के समक्ष सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति के लिए मानक प्रक्रिया (एसओपी) का मसौदा लेकर आई है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उसने केंद्र के मसौदा प्रस्ताव का अध्ययन किया है।
अदालत ने यह भी कहा कि जो मामले लंबित हैं और जिनमें फैसला पूरा हो चुका है, उन्हें विभाजित किया जाना चाहिए।
केंद्र ने सरकारी मामलों में अदालती कार्यवाही/अवमानना कार्यवाही में सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति के संबंध में एसओपी के अपने प्रस्ताव में विभिन्न पहलुओं की सिफारिश की।
अदालत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इससे पहले शीर्ष अदालत ने अदालत के निर्देश का पालन न करने पर दो आईएएस अधिकारियों को हिरासत में लेने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी और उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था।
इलाहाबाद उच्च न्यायायलय ने एक प्रस्तावित नियम को एक सप्ताह के भीतर निष्पादित करने के अदालत के निर्देश का पालन न करने के लिए शाहिद मंजर अब्बास रिज़वी, सचिव (वित्त), लखनऊ (उत्तर प्रदेश) और सरयू प्रसाद मिश्रा, विशेष सचिव (वित्त) को हिरासत में लेने का निर्देश दिया था।
इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि हलफनामे में दिए गए कथन और भौतिक तथ्यों को दबाने और न्यायालय को गुमराह करने वाले अधिकारियों के आचरण ने प्रथम दृष्टया न्यायालय की आपराधिक अवमानना की है।