बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को चंदा और दीपक कोचर की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली और अंतरिम रिहाई की मांग वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट इस पर फैसला 9 जनवरी को सुनाएगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई आज चंदा कोचर की ओर से पेश हुए और कहा कि चंदा ने स्वेच्छा से सीबीआई को एक ईमेल भेजा था जिसमें कहा गया था कि वह पिछले साल 1 नवंबर को आने और सब कुछ समझाने को तैयार हैं। एक हफ्ते तक उसका कोई जवाब नहीं आया। फिर उसने सीबीआई अधिकारी को फोन किया और पूछा कि वह कब आकर मामले की बात कर सकती है। उन्होंने कहा कि 2019, 2020 और 2021 में मामले में कुछ नहीं हुआ।
अमित देसाई ने आगे तर्क दिया कि चंदा को जून में एक नोटिस मिला था जिसमें उन्हें जुलाई 2022 में पेश होने के लिए कहा गया था। उन्होंने कहा, “उसने सीबीआई को पत्र लिखकर पेशी की तारीख टालने की मांग की, सीबीआई सहमत हो गई। इसलिए उसकी ओर से कोई असहयोग नहीं किया गया।” अगले 5 महीनों तक चुप्पी रही और फिर सीबीआई ने सीधे उन्हें को दिसंबर 2022 में पेश होने के लिए कहा। 23 दिसंबर को लापरवाही से पूछताछ की गई और उनको गिरफ्तार कर लिया गया।
“अगर सीबीआई को दिसंबर 2022 तक गिरफ्तारी की आवश्यकता महसूस नहीं हुई, तो किस बात ने उन्हें अब गिरफ्तारी करने के लिए प्रेरित किया? सीआरपीसी की धारा 41ए कहती है कि यदि कोई व्यक्ति इस धारा के तहत एजेंसी द्वारा जारी नोटिस की शर्तों का पालन करना जारी रखता है, व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या 41ए का अनुपालन किया गया था। यदि यह एक सनकी और मनमानी गिरफ्तारी है और आवश्यक नहीं है, तो सभी को सावधान रहना होगा।”
यह मामला 2009 और 2011 के बीच वीडियोकॉन समूह को आईसीआईसीआई बैंक द्वारा वितरित 1,875 करोड़ रुपये के ऋण की मंजूरी में कथित अनियमितताओं और भ्रष्ट आचरण से संबंधित है।
अपनी प्रारंभिक जांच के दौरान, सीबीआई ने पाया कि वीडियोकॉन समूह और उससे जुड़ी कंपनियों को जून 2009 और अक्टूबर 2011 के बीच आईसीआईसीआई बैंक की निर्धारित नीतियों के कथित उल्लंघन में 1,875 करोड़ रुपये के छह ऋण स्वीकृत किए गए थे। एजेंसी ने दावा किया कि ऋण को 2012 में गैर-निष्पादित संपत्ति घोषित किया गया था, जिससे बैंक को 1,730 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।