सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के कड़े विरोध के बावजूद गुरुवार को गोधरा ट्रेन अग्निकांड के एक दोषी फारूक को जमानत दे दी।
गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह सबसे जघन्य अपराध में से एक था। लोगों को बोगी में बंद करके जिंदा जलाया गया था। सामान्य परिस्थितियों में पत्थरबाजी कम गंभीर अपराध हो सकता है। लेकिन यह अलग है।
तुषार मेहता ने कहा हालांकि ट्रेन के कोच को बोल्ट किया गया था और यह सुनिश्चित करने के लिए पथराव किया गया था कि यात्री बाहर न आ सकें और इसके अलावा, फायर टेंडर पर भी पत्थर फेंके गए। इस लिए इस दोषी को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने दोषियों में से एक फारुक की ओर से पेश वकील ने कोर्ट से जमानत की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषी फारुक 2004 से जेल में है और 17 साल जेल में रह चुका है,और इसकी भूमिका ट्रेन पर पथराव करने की थी। लिहाजा उसे जेल से जमानत पर रिहा किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा बाकी 17 दोषियों की अपीलों पर छुट्टियों के बाद सुनवाई की जाएगी।
27 फरवरी, 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच को कुछ मुस्लिम आतताईओं ने आग लगा दी थी। इस कोच में अयोध्या से कारसेवा कर के लौट रहे श्रद्धालुओं में से 59 लोगों की मौत हो गई थी। इसमें दुधमुंहे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक शामिल थे। इस नृशंस घटना के बाद गुजरात में दंगे भड़क उठे थे।