सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ओडिशा राज्य सरकार और राज्य पुलिस को उन वकीलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया, जो राज्य के पश्चिमी भाग, संबलपुर में उड़ीसा हाईकोर्ट की स्थायी बेंच की लंबे समय से चली आ रही मांग को लेकर अपनी हड़ताल के दौरान अदालत परिसर में तोड़फोड़ में शामिल थे ।
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओक की पीठ ने राज्य सरकार और पुलिस महानिदेशक को संबलपुर जिले के प्रभारी पुलिसअधिकारी समेत वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से परसों अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया, जिसमें बताया जाए कि प्रदर्शनकारी वकीलों के खिलाफ क्या कदम उठाए गए हैं।
पीठ ने विरोध प्रदर्शन के वीडियो देखने के बाद ये आदेश पारित किया जिसमें अदालत को यह दिखाया गया कि प्रदर्शनकारी वकीलों द्वारा जिले के पूरे अदालत परिसर को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। अदालत के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया गया कि सभी कंप्यूटर, वीसी सुविधाएं तोड़ दी गईं और पूरे परिसर में तोड़फोड़ की गई। जस्टिस ओक ने पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित अंतिम आदेश के बाद भी यही स्थिति थी जिसमें अदालत ने विशेष रूप से विरोध करने वाले वकीलों को काम पर वापस जाने या अवमानना कार्रवाई और लाइसेंस के निलंबन का सामना करने की चेतावनी दी थी।
प्रदर्शनकारी वकीलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि विरोध करने वाले वकीलों द्वारा उठाई गई समस्याओं का समाधान खोजा जाना चाहिए, तो जस्टिस कौल ने टिप्पणी की, “हम उन सभी को हिरासत में ले लेंगे, कोई समाधान नहीं। अगर एक हजार लोगों को गिरफ्तार करने की जरूरत है तो उन्हें गिरफ्तार करने दें। हमें परवाह नहीं है। अगर आप ऐसा करते हो तो हम नहीं सुनेंगे।” अदालत के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया गया था कि संबलपुर में जिला अदालत काम नहीं कर रही है और पूरे अदालत परिसर को बंद कर दिए जाने व्यवस्था ठप हो गई है। पीठ ने कहा कि ” हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा दायर हलफनामे के आधार पर एक परेशान करने वाली तस्वीर हमारे सामने आई है। संबंधित वीडियो भी हमें दिखाया गया है। हम पुलिस की विफलता पर विचार करेंगे जिन्होंने कार्रवाई नहीं की और तोड़फोड़ करने वाले वकीलों को हिरासत में लेकर उन पर मुकदमा नहीं चलाया। उड़ीसा सरकार हमारे सामने पेश हो कि वे क्या कदम उठाने जा रहे हैं… आंदोलन को कुछ निर्दिष्ट क्षेत्रों में अनुमति नहीं दी जानी चाहिये। हम महानिदेशक और संबलपुर जिले के प्रभारी पुलिस अधिकारी को निर्देश देते हैं कि वो वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से इस अदालत के समक्ष उपस्थित होंगे ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि क्या कदम उठाए गए हैं। हम उम्मीद करते हैं कि बार काउंसिल हमारे सामने उपस्थित होकर बताएगी कि किस हद तक लाइसेंस निलंबित किए गए हैं।
” जस्टिस कौल ने उपरोक्त आदेश पारित करने के बाद प्रदर्शनकारी वकीलों के खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस की विफलता पर निराशा व्यक्त करते हुए टिप्पणी की, “वकीलों ने अपना विशेषाधिकार खो दिया है। पुलिस से कार्रवाई की उम्मीद की जाती है। पुलिस उनके साथ विनम्र बातचीत क्यों कर रही है ? उन्हें हिरासत में क्यों नहीं लिया जाना चाहिए? अगर पुलिस इसे नियंत्रित करने में सक्षम नहीं है तो हम अर्धसैनिक बल भेजेंगे। कृपया हमें बताएं कि आप इसे संभालने में सक्षम हैं या नहीं। हमें बताएं। हम परसों तक कार्रवाई चाहते हैं। क्या यह स्पष्ट है? कृपया इसे राज्य सरकार के समक्ष रखें।” जस्टिल कौल ने आगे टिप्पणी की, “ऐसा विचार है कि कुछ लोग कहीं न कहीं एससी बेंच चाहते हैं। आपके राज्य का आकार क्या है? आज तकनीक उपलब्ध है, तो क्या मुद्दा है?” जस्टिस ओक ने तब टिप्पणी की, “एक तरफ आप हाईकोर्ट की पीठ की मांग कर रहे हैं और दूसरी तरफ आप इन अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। आपने इसे शुरू किया और अब आप इसे रोक नहीं पा रहे हैं।” जस्टिल कौल ने टिप्पणी की, “हम कभी भी इस तरह की जगह पर बेंच स्थापित करने की अनुमति नहीं देंगे। अगर ऐसा है तो हम हस्तक्षेप करेंगे, ऐसे वकील इसके लायक नहीं हैं। बेंच बिल्कुल नहीं होनी चाहिए।” जस्टिल कौल ने इसके अलावा कहा, “यदि आवश्यक हुआ तो हम उन्हें सलाखों के पीछे डाल देंगे और इस आशय के आदेश पारित करेंगे कि आरोप तय होने तक वे जमानत पर भी बाहर नहीं निकल पाएं।”