दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों की जंग पर बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि एक बार जब एक कैडर आवंटित किया जाता है तो राज्य सरकार ट्रांसफर, पोस्टिंग आदि का फैसला करती है, लेकिन क्या यही सिद्धांत केंद्र शासित राज्यों पर लागू होता है, हम इसको लेकर सांविधिक प्रावधानों को देखना चाहते हैं।
पीठ के सदस्य जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि हम यह देखना चाहते हैं कि नियम के हिसाब से कैडर कंट्रोल ऑथारिटी कौन है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बालाकृष्णन रिपोर्ट संवैधानिक संशोधन से पहले की है, यह संशोधन की वैधता निर्धारित करने का आधार नहीं हो सकती है, यह एक क़ानून या ऐसा कुछ नहीं है सिर्फ इसलिए कि बालाकृष्णन अगर गलत है तो इसका मतलब यह नहीं है कि यह अधिसूचना गलत है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भूमि, सार्वजनिक व्यवस्था और कानून व्यवस्था राष्ट्रीय परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करती है और इसलिए इसे बाहर रखा गया है, अब सेवाओं के नियंत्रण पर: क्या यह इन तीनों में से किसी में है या कोई माध्यिका है।
वही दिल्ली सरकार ने कहा कि देश की विविधता के साथ संघवाद इसे संरक्षित करने का मार्ग है और सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने पास रखा है।दिल्ली सरकार ने कहा कि बहुलवाद और लोकतंत्र एक प्रतिनिधि सरकार की पहचान है।
दिल्ली सरकार ने कहा कि क्या राज्य सरकार की संपत्तियों पर एनडीएमसी द्वारा लगाया गया नगरपालिका कर केंद्रीय कर है? बहुमत ने कहा कि यदि गैर वाणिज्यिक राज्य की संपत्ति है तो छूट दी गई है। मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में लंच के बाद भी जारी रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ, सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र-दिल्ली सरकार के बीच विवाद पर सुनवाई कर रही है। संविधान पीठ में जस्टिस एम आर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा भी शामिल है।