सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बुधवार को भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा देने के संबंध में लगातार दूसरे दिन भी केंद्र सरकार पर सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट नेकहा किसी को भी त्रासदी की भयावहता पर संदेह नहीं है फिर भी जहां मुआवजे का भुगतान किया गया है वहां कुछ सवालिया निशान हैं। जस्टिस संजय कौल की अध्यक्षता में गठित बेंच ने कहा केंद्र सरकार ने मुआवजा राशि के 50 करोड़ रुपयों का भुगतान अभी तक पीड़ितों को क्यों नहीं किया है? लगभग 38 साल पहले हुई इस दुर्घटना के क्षतिपू्र्ति समझौते के खिलाफ अब पुनर्विचार याचिका पर विचार की जरूरत क्यों पड़ी।
दरअसल, अटॉर्नी जनरल आर. वैंकेटरमणी ने पीठ से कहा कि दिसंबर 1984 में भोपाल के यूनियन कॉर्बाइड कारखाने में गैस रिसाव से हुई मौतों का आंकलन सही नहीं किया गया था। उस समय इस त्रासदी से मरने वालों की संख्या 3000 और घायलों की संख्या 70 हजार बताई गई थी। जो कि सही नहीं थी। आर वेंकेटरमणी ने कहा कि भोपाल त्रासदी में मरने वालों की संख्या 5,295 और घायल लोगों का आंकड़ा 5 लाख 27 हजार 894 है। इसलिए आंकलन करने वाला चाहे जो रहा हो लेकिन में मृत-पीड़ित और प्रभावितों की इतनी बड़ी संख्या को यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता। दोषी कंपनी को इन सब को मुआवजा देना ही चाहिए।
संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि क्या किसी त्रासदी के 39 साल बाद क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने का अधिकारक्षेत्र बनता है? पीठ ने यह भी पूछा कि अगर पीड़ितों और प्रभावितों की संख्या में इतना बड़ा फर्क तो सरकार ने समझौते के खिलाफ पुनर्विचार याचिका क्यों नहीं दाखिल की, और अब सीधे क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल लेकर आ गए।
इस पर संविधान पीठ ने कहा 19 साल पहले समझौता हुआ था, पुनर्विचार का फैसला आया, सरकार द्वारा कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं हुई और अब 19 साल बाद क्यूरेटिव दाखिल की गई। कोर्ट ने पूछा कि क्या हम 38 साल बाद क्यूरेटिव पिटीशन के अधिकार को प्रयोग कर सकते हैं। मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में अभी भी जारी है।
दअरसल साल 1984 में 2 और 3 दिसंबर की रात में यूनियन कार्बाइड के कारखाने से अचानक लगभग 40 टन ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ गैस का रिसाव हुआ था। ये गैस कुछ ही समय में पूरे भोपाल शहर में फैल गई थी, जिससे वहां अफरा तफरी मच गई थी। इस त्रासदी से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके यूनियन कार्बाइड के कारखाने के आस पास के लोग थे। इस दौरान लोग अचानक बेहोश होकर गिरने लगे थे, जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी। सरकार के पहले दस्तावेजों के मुताबिक, हादसे में मरने वालों की संख्या 3000 के करीब थी। मगर बाद में कराए गए सर्वेक्षणों और दावों के बाद यह संख्या 5,295 निकल कर आई। भोपाल गैस त्रासदी के लिए डाउ कैमिकल को जिम्मेदार ठहराया गया था। इस हादसे में मृत-पीड़ितों को मुआवजे के लिए डाउ कैमिल्स और भारत सरकार के बीच 470 मिलियन डॉलर का समझौता हुआ था। केंद्र सरकार का कहना है कि यह मुआवजा कम है। जब कि डाउ कैमिकल्स की ओर से पेश हुए वकील हरीश साल्वे ने कहा कि केंद्र सरकार का दावा नाजायज है। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल जारी है।