सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले और 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उसके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को अंतिम सुनवाई 11 अक्टूबर तक के लिए टाल दी है।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, वह इस मामले की सुनवाई उसी दिन समाप्त करने का प्रयास करेगी, “हम इसे बुधवार को सुनेंगे।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे याचिकाकर्ताओं की लिखित दलीलें मिली हैं जिन्हें रिकॉर्ड पर ले लिया गया है।
इससे पहले 6 अक्टूबर को, पीठ ने बिलकिस बानो सहित याचिकाकर्ताओं के वकील से अपनी संक्षिप्त लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा था।
दरअसल गुजरात सरकार द्वारा दोषियों दी गई छूट को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा, सीपीआई (एम) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य जनहित याचिकाओं ने राहत को चुनौती दी थी।
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी सजा में छूट और समय से पहले रिहाई के खिलाफ भी जनहित याचिका दायर की है।
बिलकिस बानो 21 साल की थीं और 5 महीने की गर्भवती थीं, जब गोधरा ट्रेन जलाने की घटना के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों की दहशत से भागते समय उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। उनकी 3 साल की बेटी दंगों में मारे गए परिवार के 7 सदस्यों में से एक थी।