सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा ,यदि मौत का कारण पता नहीं हो तो शादी के 7 साल के भीतर ससुराल में सभी अस्वाभाविक मौत को दहेज हत्या नहीं माना जा सकता है। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने इस मामले में आरोपी को बरी करते हुए उपरोक्त टिप्पणी की। इस व्यक्ति को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सेक्शन 304बी (दहेज हत्या) और सेक्शन 498ए (क्रूरता) के मामले में दोषी ठहराते हुए 7 साल की सजा सुनाई थी।
दरसअल इस मामले में महिला की मौत शादी के दो साल के भीतर ही हो गई थी। मामले में निचली अदालत ने व्यक्ति को दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी। सजा के बाद व्यक्ति ने फैसले को उत्तराखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने भी व्यक्ति को दोषी माना। हालांकि, कोर्ट ने व्यक्ति की सजा को घटा कर 7 साल कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसले को व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनोती दी।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को राहत देते हुए कहा कि महिला के पिता के बयान के अनुसार शादी के शुरुआती महीनों में दहेज में मोटरसाइकिल की मांग की गई थी। हालांकि, बयान से ऐसा कुछ साबित नहीं होता है कि मौत से तुरंत पहले इस तरह की कोई मांग की गई थी या नही। रिपोर्ट के अनुसार महिला की शादी 1993 में हुई और महिला की मौत जून 1995 में हुई थी। महिला के पिता ने चरण सिंह, देवर गुरमीत सिंह और सास संतो कौर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।