सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉंड्रिंग के मामलों में पीएमएलए की वैधता को चुनौती देने की आड़ में जमानत मांगने की प्रवृत्ति की निंदा की है। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाशकालीन पीठ ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि अधिनियम को चुनौती देने वाली ऐसी याचिकाएं दायर करना अन्य उपलब्ध कानूनी उपायों को दरकिनार करना है।
छत्तीसगढ़ में कथित शराब घोटाला मामले में जांच का सामना कर रहे लोगों द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाश पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है।
पीठ ने कहा कि अदालत विजय मदनलाल के फैसले के बावजूद धारा 15 और 63 और पीएमएलए के अन्य प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली धारा 32 के तहत इस अदालत में रिट याचिकाएं दायर करना एक प्रवृत्ति बन गई है। लेकिन याचिकाकर्ता ऐसे मामलों के निपटारे के लिए उन मंचो से किनारा कर रहे हैं, जो उनके लिए खुले हैं
पीठ ने टिप्पणी की कि सुप्रीम कोर्ट एक वैकल्पिक मंच बनता जा रहा है। हाई कोर्ट जाने और वहां के कानून के प्रावधानों को चुनौती देने के बजाय आरोपी सुप्रीम कोर्ट में सम्मन का विरोध कर रहे हैं।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मदनलाल फैसले मेंमनी लॉंड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तारी,मनी लॉंड्रिंग में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती से संबंधित प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों को बरकरार रखा था। संविधान का अनुच्छेद 32 व्यक्तियों को यह अधिकार देता है कि यदि उन्हें लगता है कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तो वे सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं।