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जम्मू-कश्मीर विधानसभा का परिसीमन सही या गलत सुप्रीम कोर्ट सोमवार 13 फरवरी को सुनाएगा फैसला

Jammu-Kashmir Delimitation

सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि जम्मू कश्मीर में हुआ परिसीमन संविधान के नियमों के मुताबिक हुआ है या नहीं। श्रीनगर के रहने वाले हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू ने जम्मू कश्मीर में परिसीमन को चुनौती देते हुए उसे रद्द करने की मांग की थी।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओक की बेंच की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित किया था अब ये फैसला जस्टिस अभय एस ओक सुनाएंगे।
परिसीमन के खिलाफ दाखिल इन याचिकाओं में कहा गया था कि परिसीमन में सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है… जबकि अपने जवाब में केंद्र सरकार, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और चुनाव आयोग ने इन दलीलों को गलत बताया था।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों के परिसीमन के लिए आयोग का गठन संवैधानिक प्रावधानों के हिसाब से सही नहीं है. परिसीमन में विधानसभा क्षेत्रों की सीमा बदली गई है. उसमें नए इलाकों को शामिल किया गया है… साथ ही सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी गई है, जिसमें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की भी 24 सीटें शामिल हैं. यह जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 63 का उल्लंघन है। इस मामले पर सरकार की तरफ से जवाब देते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा संविधान के अनुच्छेद 2, 3 और 4 के तहत संसद को देश में नए राज्य या प्रशासनिक इकाई के गठन और उसकी व्यवस्था से जुड़े कानून बनाने का अधिकार दिया गया है. इसी के तहत पहले भी परिसीमन आयोग का गठन किया जाता रहा है… सॉलिसिटर जनरल ने परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि कश्मीर में 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया है. जम्मू-कश्मीर में 2019 से पहले परिसीमन अधिनियम लागू नहीं था…साथ ही याचिकाकर्ता का यह कहना गलत है कि परिसीमन सिर्फ जम्मू कश्मीर में ही लागू किया गया है. इसे असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड के लिए भी शुरू किया गया है।

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About the Author: Ashish Sinha

-Ashish Kumar Sinha -Editor Legally Speaking -Ram Nath Goenka awardee - 14 Years of Experience in Media - Covering Courts Since 2008

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