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‘नोटबंदी’ पर जस्टिस बीवी नागरत्ना का फैसला! सरकार और आरबीआई के आत्मनिरीक्षण के लिए कितना जरूरी

जस्टिस नागरत्ना

सरकार द्वारा 2016 में लिए गए नोटबंदी के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट 4-1 के बहुमत से भले ही मुहर लगा दी हो लेकिन संविधान पीठ की पांचवी जज बीवी नागरत्ना का फैसला अपने चार सहयोगी जजों से बिल्कुल अलग है। उन्होंने अपने फैसले को अलग से बा-आवाज बुलंद पढ़ कर सुनाया। उन्होंने ऐसे ढेर सारे सवाल उठाए जिससे सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को आत्म निरीक्षण के लिए विवश हो सकती है। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने नोटबंदी के फैसले को न केवल गैरकानूनी ठहराया बल्कि आरबीआई (RBI) को सीमा लांघने तक की बात कह डाली। नोटबंदी पर जस्टिस एस. ए. नज़ीर की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ में जस्टिस बी. आर. गवई , न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन भी शामिल थे ।

जस्टिस नागरत्ना ने नोटबंदी ने अपने फैसले में नोटबंदी को ‘गैरकानूनी’ बताते हुए कहा है कि  500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का फैसला अध्यादेश के बजाए कानून के जरिए लिया जाना चाहिए था और इतने महत्वपूर्ण मामले से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता। 

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई नोटबंदी की कार्रवाई गैरकानूनी है। लेकिन इस समय यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार को अध्यादेश के बजाय इसे कानून बनाकर लाना चाहिए लेकिन सरकार द्वारा ऐसा नहीं किया गय।

जस्टिस बी वी नागरत्ना ने कहा नोटबंदी का प्रस्ताव केंद्र सरकार की तरफ से आया था और आरबीआई (RBI) से राय मांगी गई थी। आरबीआई (RBI) द्वारा दी गई ऐसी राय को आरबीआई अधिनियम (RBI ACT) की धारा 26(2) के तहत “सिफारिश” के रूप में नहीं माना जा सकता है। अगर यह मान भी लिया जाए कि आरबीआई (RBI) के पास ऐसी शक्ति थी तो यह शक्ति केवल करेंसी नोटों की एक विशेष श्रृंखला के लिए हो सकती है और किसी मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों की पूरी श्रृंखला के लिए नहीं।  उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26(2) के अंतर्गत कोई भी श्रृंखला” का अर्थ “सभी श्रृंखला” नहीं हो सकता है।

जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में लिखा है कि नोटबंदी से जुड़ी समस्याओं से एक आश्चर्य होता है कि क्या सेंट्रल बैंक ने इनकी कल्पना की थी? यह रिकॉर्ड पर लाया गया है कि 98% बैंक नोटों की अदला-बदली की गई। इससे पता चलता है कि उपाय स्वयं प्रभावी नहीं था जैसा कि होने की मांग की गई थी। अदालत इस तरह के विचार के आधार पर अपने फैसले को आधार नहीं बना सकती है। उन्होंने कहा कि 500 रुपये और 1000 रुपये के सभी नोटों का विमुद्रीकरण (Demonetisation) गैरकानूनी और गलत है।

ध्यान रहे, नोटबंदी के खिलाफ बहस शुरू करते वक्त याचिकाकर्ताओं के वकीलों में एक पी. चिदम्बरम ने कहा था कि, ‘ नोटबंदी को लागू हुए काफी समय बीत चुका है, इसलिए उसको वापस लेना तो नामुम्किन होगा, मगर पीठ ऐसी व्यवस्था जरूर दे जिससे सरकार भविष्य में ऐसे गलत कदम न उठा सके!’ जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में ‘नोटबंदी’ पर सवाल उठा कर सरकार को आत्मनिरीक्षण के लिए विवश जरूर किया है। भारतीय लोकतंत्र और न्यायव्यवस्था की यही खूबसूरती है कि जस्टिस नागरत्ना ने विपरीत विचारों के बावजूद पीठ के निर्णय को स्वीकार किया।

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About the Author: Aksha Mishra

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