जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर ने अपने आखिरी संबोधन में भी एक नजीर बना दी। वो नजीर यह कि धर्म उन्हें नष्ट कर देता है जो इसे नष्ट करते हैं और जो धर्म की रक्षा करते हैं, धर्म उनकी रक्षा भी करता है। जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर की ये आखिरी पंक्तियां जज समुदाय के लिए केवल एक नजीर नहीं नसीहत भी थी। जहां जिसको जो समझना था वो समझ चुका होगा। जस्टिस नजीर ने तीर जहां मारा , वहां लग भी गया है। असर कितना होता और कितना दिखता है, यह तो चमड़ी की चमक-दमक से पता चलेगा।
बहरहाल, जस्टिस नजीर ने संस्कृत का वो श्लोक कुछ इस तरह पढ़ा, ‘धर्मे सर्व प्रतिष्ठा प्रतिष्ठम्, तस्मद धर्म प्रवदंति धर्म एव हतोहंति धर्मो रक्षिति रक्षितः’जस्टिस नजीर ने इस श्लोक के मायने भी समझाए। जो धर्म की रक्षा करते हैं धर्म उनकी रक्षा करता है, जो धर्म को नष्ट करते धर्म उनको नष्ट कर देता। जस्टिस नजीर ने चीफ जस्टिस सहित सभी जज समुदाय को समझा दिया कि धर्म को बचाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है, अगर तुमने धर्म को नहीं बचाया तो धर्म तुम्हें नष्ट कर देगा।
जस्टिस नजीर इन दो पंक्तियों से एक बड़ा चैलेंज और चुनौती देकर गए हैं। जज समुदाय अब भी न समझे जो उनका कोई दोष नहीं होगा। जस्टिस नजीर ने यंग लायर्स को आगे लाने, बहस का मौका देने की वकालत की। यंग लायर्स की एनर्जी की तारीफ की। उन्होंने सीनियर्स से कहा कि वो जूनियर्स के मेंटोर बनें।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने अपने विदाई कार्यक्रम में कहा कि भारतीय न्यायपालिका को लैंगिक असमानताओं से मुक्त कहना वास्तविकता से कोसों दूर है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से आयोजित विदाई समारोह में जस्टिस नजीर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपनी स्थापना के बाद से एक लंबा सफर तय कर चुकी है और भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ के मार्गदर्शन में आज के समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है, लेकिन सुधार की गुंजाइश फिर भी मौजद है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में जस्टिस नजीर का बुधवार अंतिम दिन था। विदाई समारोह में जस्टिस नजीर ने संस्कृत के श्लोक के साथ अपना संबोधन समाप्त किया।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि समाज में गलत सूचना के कारण लोग स्थिति को गलत मान लेते हैं और आज की स्थिति पहले जैसी गंभीर नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि महिला सशक्तिकरण से अधिक प्रभावी विकास का कोई साधन नहीं है। न्यायमूर्ति नजीर राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद और तीन तलाक का मुद्दा और निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने समेत कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं।
बहरहाल, जस्टिस नजीर ने 18 फरवरी, 1983 को वकालत के पेशे की शुरुआत की थी। उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट से वकालत की और 12 मई, 2003 को कर्नाटक उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किये गये। बाद में उन्हें 24 सितंबर, 2004 को स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
इस अवसर पर सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूढ ने कहा कि जस्टिस नजीर वैसे न्यायाधीश नहीं हैं, जो सही और गलत के बीच तटस्थ रहेंगे, बल्कि वह सच को तलाशेंगे और इसके लिए खड़े होंगे और न्याय सुनिश्चित करेंगे। दुर्भाग्यवश, मैं उनके समक्ष (वकील के तौर पर) पेश नहीं हो सका, लेकिन अयोध्या मामले की सुनवाई में मैं उनके साथ पीठ में शामिल था और मैंने महसूस किया कि उनका व्यक्तित्व कितना बड़ा है। मैं आज शाम सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से आयोजित विदाई समारोह के लिए अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों को संजोकर रख रहा हूं।
इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि न्यायमूर्ति नजीर ने बार के साथ हमेशा बेहद शालीनता बरती और उन्होंने अदालत कक्ष में हमेशा सुखद माहौल बनाए रखा। विवादास्पद अयोध्या भूमि विवाद का फैसला करने वाली संविधान पीठ के एकमात्र मुस्लिम न्यायाधीश के रूप में सुप्रीम कोर्ट का सर्वसम्मत फैसला सुनाने के लिए सहमत हुए तो उन्होंने वास्तव में न केवल देश के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया बल्कि धर्मनिरपेक्षता और एक सच्चे भारतीय के रूप में न्यायिक संस्था की सेवा करने की उनकी भावना भी जाहिर की।
जस्टिस नजीर वही शख्स हैं जिसकी वजह से ट्रिपल तलाक का कानून प्रभावी होकर लागू हो सका। ये सरकारें जस्टिस नजीर को उनके कृतित्व का बोझ तो क्या उतार सकेंगी, लेकिन किसी शासकीय पद उनको सौंपती हैं तो यह सरकार की मान बढ़ौतरी होगी। क्यों कि जस्टिस नजीर ने तो साबित कर दिया है कि किसी भी पद प्रतिष्ठा से काफी ऊपर उनका व्यक्तित्व निकल चुका है।