पंजाब सरकार का विधान सभा सत्र बुलाए जाने को लेकर उठे विवाद और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ही राज्यपाल ने 3 मार्च से बजट सत्र बुलाए जाने की मंजूरी दे दी। हालांकि यह विवाद फिल्हाल टल गया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सविंधान के अनुच्छेद 167बी साफ है कि अगर राज्यपाल सरकार से कोई जानकारी मांगते हैं तो इसे देने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। यानी सरकार से जो जानकारी राज्यपाल मांगते हैं वो जानकारी सरकार को मुहैया करवानी चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर जनता की चुनी हुई सरकार विधान सभा के सत्र को बुलाने का आग्रह करती है तो राज्यपाल सरकार के अनुरोध को टाल नहीं सकते।
पंजाब सरकार की ओर से दाखिल याचिका पर सु्प्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही थी। पीठ में जस्टिस नरसिम्हा भी शामिल रहे। जस्टिस नरसिम्हा ने पंजाब सरकार की ओर से पेश हुए वकील से कहा कि राज्यपाल को जवाब देते समय मुख्यमंत्री (कैबिनेट) असंयमित नहीं हो सकते। जस्टिस नरसिम्हा ने यह भी कहा कि राज्यपाल भी सत्र को रोक नहीं सकते। संयम और धैर्य दोनों पक्षों को बनाकर रखना होगा। सरकार को राज्यपाल का सम्मान भी करना चाहिए।
इससे पहले पंजाब सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी कि राज्यपाल ने 3 मार्च को सुबह 10 बजे विधानसभा बुलाने का आदेश पारित किया है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब सरकार राज्यपाल द्वारा मांगी गई जानकारी देने के लिए बाध्य है। पंजाब सरकार और गवर्नर के बीच टकराव पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक अधिकारियों को आधिकारिक संचार में निश्चित स्तर की बातचीत को बनाए रखना है। साथ ही, विधानसभा बुलाने पर कैबिनेट की सिफारिशों को स्वीकार करना भी राज्यपाल का कर्तव्य है। इससे पहले पंजाब सरकार की तरफ से कहा गया कि राज्यपाल संविधान का पालन नहीं कर रहे।
इससे पहले गवर्नर की तरफ से विधानसभा का बजट सत्र बुलाने की अनुमति नहीं दिए जाने के खिलाफ पंजाब सरकार सोमवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। पंजाब सरकार ने सोमवार सुबह अतिरिक्त महाधिवक्ता शादान फरासत के माध्यम से भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। इस याचिका पर मंगलवार दोपहर को सुनवाई हुई। इस याचिका में पंजाब के राज्यपाल के प्रधान सचिव को पहले प्रतिवादी के रूप में रखा गया था। याचिका में तर्क दिया गया था कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार सरकार द्वारा दी गई सहायता और सलाह के अनुसार राज्यपाल को विधानसभा को बुलाना पड़ता है।
पंजाब सरकार के कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल से विधानसभा का बजट सत्र तीन मार्च से बुलाने की अनुमति मांगी थी। राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने इस बजट सत्र को बुलाने से फिलहाल इंकार कर दिया था। साथ ही एक पत्र लिखकर कहा कि मुख्यमंत्री सीएम के ट्वीट और बयान काफी अपमानजनक और असंवैधानिक थे। इन ट्वीट पर कानूनी सलाह ले रहे हैं। इसके बाद बजट सत्र को बुलाने पर विचार करेंगे।
इससे पहले 13 फरवरी को राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को पत्र लिखकर, सिंगापुर में ट्रेनिंग के लिए भेजे गए प्रिंसिपलों की चयन प्रक्रिया व खर्च समेत चार अन्य मुद्दों पर जानकारी तलब की थी। इसके जवाब में, मुख्यमंत्री ने 13 फरवरी को ही ट्वीट कर राज्यपाल की नियुक्ति पर सवाल उठाने के साथ-साथ साफ कर दिया कि राज्यपाल द्वारा उठाए सभी मामले राज्य का विषय हैं।
मुख्यमंत्री मान ने लिखा था कि उनकी सरकार पंजाब की 3 करोड़ जनता के प्रति जवाबदेह है। मान ने कहा कि वो न तो केंद्र सरकार के प्रति जवाबदेह हैं और न ही उनके नियुक्त किसी राज्यपाल के प्रति जवाबदेह हैं।