सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अंतर-धार्मिक जोड़ों के बीच कोई भी विवाह शून्य है और केवल हिंदू ही उसी कानून के तहत विवाह कर सकते हैं। तेलंगाना हाईकोर्ट के अगस्त 2017 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने शुक्रवार को यह टिप्पणी की। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई फरवरी में तय की है।
तेलंगाना हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 494 के तहत कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया था। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 494, पति या पत्नी के जीवित रहते हुए, किसी भी मामले में शादी करती है, जिसमें ऐसे पति या पत्नी के जीवन के दौरान होने के कारण ऐसी शादी शून्य है, साथ दंडित किया जाएगा।
याचिकाकर्ता ने कहा कि कथित विवाह को कथित समारोह से पहले कभी दर्ज नहीं किया गया था और न ही इसे कथित समारोह के बाद पंजीकृत किया गया था जैसा कि अंतर-धार्मिक विवाहों के लिए विशेष विवाह अधिनियम के तहत आवश्यक है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह से झूठे, निराधार और मनगढ़ंत हैं और उक्त आरोपों में रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है, और सगाई समारोह जिसे शादी नहीं कहा जा सकता है और इसके अलावा अगर इस तरह की शादी (हालांकि स्वीकार नहीं की गई) जैसा कि दूसरे प्रतिवादी द्वारा आरोप लगाया गया है, यह एक शून्य विवाह है, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता धर्म से ईसाई है और किसी भी समय उसने कभी भी अपने धर्म को हिंदू धर्म में परिवर्तित नहीं किया।