हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अवैध अतिक्रमण को हटाने के उत्तराखण्ड हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। इसी के साथ रेलवे बुल्डोजरों पर ब्रेक लग गया है। पिछले कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे लोगों ने जब इस आदेश को सुना तो उनमें खुशी की लहर दौड़ गई। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और अभय एस ओक की पीठ ने की।
इससे पहले, पिटीशनर्स के वकील कॉलिन गॉन्जाल्वेस ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कई दशकों से लोग उस जमीन पर रह रहे हैं। जमीन पर कच्चे-पक्के मकानों के अलावा कई स्कूल-कॉलेज मस्जिद भी हैं। नगर निगम की ओर से सीवर लाइन डाली जा चुकी है और कुछ लोगों ने जमीनों की लीज डीड भी करवा रखी है।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखण्ड सरकार और रेलवे की ओर से पेश हुए वकीलों से पूछा कि अतिक्रमण हटाने से पहले आपने कोई रिहेब्लिटेशन स्कीम तैयार की है? 50 हजार लोगों को सड़कों पर नहीं छोड़ा जा सकता। इस पर रेलवे और उत्तराखण्ड सरकार की ओर से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।
सरकार और रेलवे के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि ऑरिजनल मामला अवैध खनन से शुरू हुआ और फिर अवैध अतिक्रमण तक पहुंचा। तब जाकर पता चला कि रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा हो चुका है। इसी कब्जे को हटाने के लिए सारी विधिक प्रक्रिया पूरी की गई है, और कब्जाधारियों की जानकारी में था कि अवैध अतिक्रमण को हटाया जाना है।
इसके बावजूद उन्होंने अतिक्रमण नहीं हटाए, इसलिए नोटिस देकर कार्रवाई शुरू की गई। सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे के वकील से कहा कि आपकी योजना क्षेत्र के विकास की नहीं सिर्फ अतिक्रमण हटाने की है। रेलवे के वकीलों ने कहा कि यह जमीन हमारी है और उस पर हमारा अधिकार है।
जस्टिस संजय कौल ने कहा कि यह एक प्रैक्टिकल प्रॉब्लम है। इसका समाधान सोच समझ कर निकाला जाना चाहिए। इस मामले पर अगले महीने सात फरवरी को सुनवाई होगी और तब तक के लिए अतिक्रमण कार्रवाई पर रोक लगाई जाती है। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखण्ड सरकार, रेलवे और सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने के निर्देश दिए।