सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को सोमवार को बड़ी राहत मिली है। श्रीनगर के रहने वाले हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू ने जम्मू कश्मीर में परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केन्द्र सरकार को पॉवर है डिलीमिटेशन कमीशन बना सकता है और केंद्र ने अपने अधिकारों का उचित प्रयोग किया है।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओक की बेंच की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित किया था।
परिसीमन के खिलाफ दाखिल इन याचिकाओं में कहा गया था कि परिसीमन में सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है… जबकि अपने जवाब में केंद्र सरकार, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और चुनाव आयोग ने इन दलीलों को गलत बताया था।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों के परिसीमन के लिए आयोग का गठन संवैधानिक प्रावधानों के हिसाब से सही नहीं है। परिसीमन में विधानसभा क्षेत्रों की सीमा बदली गई है. उसमें नए इलाकों को शामिल किया गया है… साथ ही सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी गई है, जिसमें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की भी 24 सीटें शामिल हैं। यह जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 63 का उल्लंघन है।
इस मामले पर सरकार की तरफ से जवाब देते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा संविधान के अनुच्छेद 2, 3 और 4 के तहत संसद को देश में नए राज्य या प्रशासनिक इकाई के गठन और उसकी व्यवस्था से जुड़े कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। इसी के तहत पहले भी परिसीमन आयोग का गठन किया जाता रहा है… सॉलिसिटर जनरल ने परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि कश्मीर में 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया है। जम्मू-कश्मीर में 2019 से पहले परिसीमन अधिनियम लागू नहीं था…साथ ही याचिकाकर्ता का यह कहना गलत है कि परिसीमन सिर्फ जम्मू कश्मीर में ही लागू किया गया है। इसे असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड के लिए भी शुरू किया गया है।